अहिंसा से सुख की प्राप्ति संभव : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
देश के प्रधानमंत्री की धर्मपत्नी श्रीमती जसोदाबेन मोदी ने किए आचार्यश्री के दर्शन

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16.05.2025, शुक्रवार, उंझा, मेहसाणा।गुजरात की धरा पर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ निरंतर गतिमान हैं। जन-जन को अपनी अमृतवाणी से अभिसिंचन प्रदान करते हुए आचार्यश्री अब धीरे-धीरे गुजरात की राजधानी अहमदाबाद की ओर बढ़ रहे हैं। गुजरात के सुदूर क्षेत्र कच्छ-भुज, सहित अनेकानेक गांवों, कस्बों, नगरों को पावन बनाते हुए अब आचार्यश्री अब अहमदाबाद की ओर बढ़ रहे हैं। ज्ञातव्य है कि वर्ष 2025 का चतुर्मास अहमदाबाद के कोबा में स्थित ‘प्रेक्षा विश्व भारती’ में निर्धारित है।
शुक्रवार को प्रातः की मंगल बेला में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ विसलवासना से मंगल प्रस्थान किया। तपती गर्मी में भी समभाव से आचार्यश्री का विहार श्रद्धालुओं की आस्था को और अधिक प्रगाढ़ बना रहा है। मार्ग में दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को अपने मंगल आशीष से लाभान्वित करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग दस किलोमीटर का विहार कर उंझा में स्थित श्री जी.एम. कन्या विद्यालय में पधारे।
विद्यालय परिसर में आयोजित प्रातःकालीन मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित श्रद्धालु जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि अहिंसा सुख और शांति का बहुत बड़ा कारण है। हिंसा से दुःख पैदा होता है। अहिंसा से सुख की प्राप्ति होती है। अहिंसा के साथ अभय भी होना चाहिए। अहिंसक आदमी को भयभीत नहीं होना चाहिए। न आदमी स्वयं न डरे और दूसरे को डराए। यह अभय की परिपूर्णता की बात होती है। अहिंसा कायरता नहीं, निर्भीकता होनी चाहिए। शक्तिशाली होने पर भी क्षमा करना वीरता होती है। क्षमा को वीरों का भूषण कहा गया है।
हिंसा न करना अहिंसा है। हिंसा के तीन प्रकार बताए गए हैं- आरम्भजा हिंसा, प्रतिरक्षात्मिकी हिंसा और संकल्पजा हिंसा। गृहस्थ जीवन में रहते हुए आदमी से खेतीबाड़ी के संदर्भ में, रसोई आदि में और अन्य कार्यों में छोटे-मोटे जीवों की हिंसा हो जाती है। यह मानव जीवन के आवश्यक कोटि की हिंसा होती है, इसे छोड़ना असंभव होता है। अपनी रक्षा के लिए, अपने परिवार की रक्षा के लिए, राष्ट्र की रक्षा के लिए हिंसा करनी पड़े तो वह प्रतिरक्षात्मिकी हिंसा हो गई।
तीसरी हिंसा होती है-संकल्पजा हिंसा। किसी के संदर्भ में यह मन बना लेना की इसे मारना ही है। क्रोध, लोभ, भय आदि कारणों से किसी निरपराध को मारना संकल्पजा हिंसा है। आदमी को ऐसी हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। बेगुनाह को मारने वाली हिंसा से आदमी को बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने जीवन व्यवहार में ज्यादा से ज्यादा अहिंसा रखने का प्रयास करना चाहिए।
साधु का जीवन तो अहिंसा प्रधान होना ही चाहिए। साधु को तो दयामूर्ति, अहिंसामूर्ति व क्षमामूर्ति होना ही चाहिए। गृहस्थ जीवन में साधु जितनी अहिंसा का पालन भी हो सके तो जितना संभव हो सके, मन में दया, अनुकंपा और अहिंसा की भावना को रखने का प्रयास करना चाहिए। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन चलाया, जिसमें छोटे-छोटे नियम बनाए, जिनके द्वारा आदमी का जीवन सुधर सकता है। व्यक्ति का जीवन अच्छा हो तो परिवार, समाज और राष्ट्र का जीवन स्तर भी अच्छा हो जाता है। गृहस्थ जीवन के लिए धन की आवश्यकता होती है। आदमी को धन की प्राप्ति में नैतिकता रखने का प्रयास करना चाहिए। झूठ, कपट, धोखा आदि से बचने का प्रयास होना चाहिए। आदमी को अपने जीवन में ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए। सन् 2002 में आचार्यश्री महाप्रज्ञजी इस विद्यालय में पधारे थे और आज हमारा आना हो गया। उंझा के लोगों में धार्मिकता पुष्ट होती रहे।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त उंझा के विधायक श्री किरिटभाई पटेल ने अपनी अभिव्यक्ति दी व आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। कन्या विद्यालय के ट्रस्टी श्री कन्नुभाई पटेल, उंझा जैन महाजन संघ के अध्यक्ष श्री सुरेशभाई शाह, सुश्री रश्मि बरड़िया, श्रीमती नीतू बैद व जितूभाई ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की धर्मपत्नी श्रीमती जसोदाबेन मोदी ने अपनी अभिव्यक्ति देते हुए आचार्यश्री का मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्यप्रवर का उनके साथ अलग से भी वार्तालाप का क्रम रहा।