मन बने मंदिर व शरीर पर शोभित हो आध्यात्मिक आभूषण : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
-माडका प्रवास के दूसरे दिन शांतिदूत के प्रवचन रूपी ज्ञानगंगा में श्रद्धालुओं लगाई डुबकी

मन बने मंदिर व शरीर पर शोभित हो आध्यात्मिक आभूषण : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
-माडका प्रवास के दूसरे दिन शांतिदूत के प्रवचन रूपी ज्ञानगंगा में श्रद्धालुओं लगाई डुबकी
– माडकावासियों द्वारा अभिवंदना की प्रस्तुति
13.04.2025, रविवार,माड़का,वाव थराद।जन-जन के मानस को पावन बनाते हुए गुजरात की पग-पग की धरा को आध्यात्मिक गंगा से अभिसिंचित करते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी माडका में द्विदिवसीय प्रवास कर रहे हैं। मंगल प्रवास के दूसरे दिन रविवार को सूर्योदय से पूर्व ही आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में माडकावासी उमड़ आए थे। सभी ने आचार्यश्री से प्रातःकाल के मंगलपाठ आदि का श्रवण कर आध्यात्मिक लाभ उठाया। माडका में लोगों का उत्साह देखते ही बन रहा है। ऐसा लग रहा था, मानों माडका में कोई नवीन उत्सव-सा आया हुआ है। माडका का जन-जन इस आध्यात्मिक अवसर का लाभ उठाने को आतुर नजर आ रहा था, तभी तो आचार्यश्री के प्रवचन पण्डाल में पदार्पण से पूर्व ही प्रवचन पण्डाल श्रद्धालुओं से भरा हुआ था।
आचार्यश्री के ‘महाश्रमण समवसरण’ में मंचासीन होते ही पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के मंगलपाठ से आज के प्रातःकालीन कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को उद्बोधित किया।
तत्पश्चात युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने माडकावासियों को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि भगवान, परमात्मा का कितने लोग स्मरण करते होंगे। जिनके मन में धर्म के प्रति रुचि है, आस्था है, आराध्य के प्रति भक्ति है, वे अपने आराध्य का, भगवान का स्मरण, जप श्रद्धा के साथ करने वाले हो सकते हैं। इस मानव जीवन में हमारा मन मंदिर बन जाए और मन मंदिर में हमारा आराध्य विराजमान हो जाए। उपासना, जप, भक्ति अच्छा आत्मशुद्ध का साधन बन सकता है। नाम जप करना, स्मरण करना, सत्संग करने से भावशुद्धि हो सकती है। जप करने से आत्मा की शुद्धि बढ़ सकती है। इससे दिन भर में लगे पाप भी धुल सकते हैं। साधु प्रतिक्रमण करते हैं। वह भी एक शुद्धि का उपाय है। भक्ति गीत, पद्य आदि में भी शुद्धि की भावना सन्निहित होती है। सामायिक, पौषध आदि भी उपासना साधना का धर्म होता है। दूसरा धर्म का पक्ष है कि आदमी का आचरण अच्छा हो। आदमी सोने-चांदी का आभूषण पहनता है। आभूषणों से शरीर की शोभा हो सकती है। आभूषणों का गृहस्थ जीवन में थोड़ा महत्त्व मान भी सकते हैं, किन्तु साधु-संतों के लिए तो बाह्य आभूषण किसी काम के नहीं है। साधु-संतों का जीवन में तो साधुत्व, साधना, शुद्ध आचरण ही आभूषण होते हैं। एक अवस्था के बाद आदमी को परिग्रह का यथासंभवतया अल्पीकरण करने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी को यथासंभवतया आंतरिक अथवा धार्मिक आभूषणों को पहनने का प्रयास करना चाहिए। हाथ में कंकण नहीं, हाथ से दान देना होता है। साधु-संतों को दान देना हाथ का आभूषण है। फिर कहीं भूखे को भोजन, प्यासे को पानी आदि देना भी दान ही कहा जाता है। किसी को झूठ बोलने का त्याग, मांस-मदिरा आदि का त्याग करना, किसी को दीक्षा के तैयार करना आदि भी बहुत अच्छी बात हो सकती है। गुरु को वंदन करना मस्तक का आभूषण होता है। मुख का आभूषण सत्यवाणी होती है। सामान्य आदमी को यथासंभवतया सत्य ही बोलने का प्रयास करना चाहिए। सत्य इतना बढिया आभूषण है कि इसका मूल्यांकन नहीं हो सकता। कानों से ज्ञान की बातें, आगम वाणी, शास्त्र वाणी को श्रवण करने का प्रयास करना चाहिए। हृदय में स्वच्छता रहे। इस प्रकार आदमी को अपने शरीर पर आध्यात्मिक आभूषण धारण करने का प्रयास करना चाहिए।
उपासकगण आचार्यश्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष का काल है तो इसे सुकाल करने का प्रयास करना चाहिए। इस निमित्त से ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय का उपक्रम चले व तपस्या हो जाए तो इस अवसर का अच्छा लाभ उठाया जा सकता है। ‘भिक्षु चेतना वर्ष’ एक वर्ष का उपक्रम है, इसका अच्छा आध्यात्मिक लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि अभी हमारा माडका में प्रवास हो रहा है। आज दूसरा दिन है। कल संभवतः वाव का प्रवास है। आगे वाव में नौ दिनों का प्रवास रखा गया है। इस एरिया का मुख्य सेंटर है। वाव-पथक में मुख्य वाव है। माडका में खूब धार्मिक-आध्यात्मिकता बनी रहे।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त अपने संसारपक्षीय परिवार से संबद्ध धरती पर साध्वी सिद्धांतश्री ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। आचार्यश्री ने स्वाध्याय, साधना, सेवा भावना व सिद्धांत के अध्ययन का मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
माडका तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। ‘संघ समर्पण गौरव गाथा’ परिख परिवार-माडका की ओर से रमिला बेन और अल्का बेन प्रस्तुति दी। श्रीमती चेतना पारिख ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी कई प्रस्तुतियां दीं। आचार्यश्री ने ज्ञानार्थियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। श्री किरिटभाई ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।