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धार्मिक विधि के नाम पर जैन मुनि ने किया था दुष्कर्म, कोर्ट ने सुनाई 10 साल की सजा

सूरत। टीमलीयावाड़ स्थित दिगंबर जैन उपाश्रय में आठ साल पहले वडोदरा निवासी 19 वर्षीय श्राविका के साथ धार्मिक विधि के नाम पर दुष्कर्म करने वाले जैन मुनि शांति सागरजी महाराज को कोर्ट ने दोषी ठहराया है। एडिशनल सेशंस जज ए.के. शाह की अदालत ने आरोपी को IPC की धारा 376(1) और 376(2)(F) के तहत 10 साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई है।

अठवा पुलिस थाने में वर्ष 2017 में दर्ज शिकायत के अनुसार, मूल मध्यप्रदेश निवासी तथा वडोदरा में रहने वाली पीड़िता ने बताया था कि मार्च 2017 से उनके परिवार ने आरोपी मुनि को गुरु के रूप में माना था। इसी विश्वास का फायदा उठाते हुए 1 अक्टूबर 2017 को आरोपी ने परिवार को रात्रि दर्शन के लिए नानपुरा टीमलीयावाड़ स्थित जैन उपाश्रय में बुलाया।

मुनि ने माता-पिता को एक कमरे में विधि के लिए बिठा दिया और जाप करने को कहा। इसी दौरान इशारे से पीड़िता और उसके भाई को साथ ले जाकर, फिर लड़की को अकेले दूसरे कमरे में ले जाकर उससे कहा, “आज का दिन अच्छा है, तुझे क्या चाहिए?” पीड़िता के जवाब देने पर कि मेरे माता-पिता और मैं खुश रहें, मुनि ने उसके शरीर पर हाथ फेरते हुए कपड़े उतारे और चटाई पर लेटने को कहा। साथ ही धमकी दी कि अगर आवाज की तो माता-पिता को नुकसान होगा।

इसके बाद धार्मिक विधि के बहाने दुष्कर्म किया गया और मुनि ने चेतावनी दी कि जब भी बुलाया जाए तब आना होगा, और किसी को बताया तो माता-पिता मर जाएंगे।

दुष्कर्म की शिकायत दर्ज होने के बाद से ही आरोपी जेल में है, उसे जमानत भी नहीं मिली थी। कोर्ट ने शुक्रवार (4 अप्रैल) को फैसला सुनाते हुए 10 साल की सजा सुनाई।

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