ध्यान गुरु आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनि जी म.सा. के सान्निध्य में आत्म ध्यान धर्म यज्ञ का शुभारंभ

सूरत से सीधा प्रसारण होते हुए नाशिक ध्यान केन्द्र और आदीश्वर धाम कुप्पकलां (पंजाब) में एक दिवसीय एवं चार दिवसीय आत्म ध्यान धर्म यज्ञ का शुभारंभ श्रद्धा व उत्साह के साथ हुआ। आत्मार्थी साधक इस धर्मयज्ञ में आत्मज्ञान प्राप्त कर आत्म साक्षात्कार की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनि जी म.सा. ने अपने प्रेरक उद्बोधन में कहा कि आत्मार्थी को यह जानना जरूरी है – “मैं कौन हूं? कहां से आया हूं? और जन्म-मरण के बंधन से मुक्त कैसे हो सकता हूं?” उन्होंने कहा कि आत्म ध्यान साधक को वर्तमान क्षण में स्थित करता है, जिससे मन मौन हो जाता है। वह न भूतकाल का चिंतन करता है और न भविष्य की चिंता करता है। इसके लिए श्वांस को आलंबन बनाना जरूरी है, क्योंकि श्वांस और शरीर का गहरा संबंध है। जब क्रोध या अहंकार उत्पन्न हो, तो आते-जाते श्वांस पर ध्यान केंद्रित करें, यह मन के भटकाव से बचने का प्रभावी साधन है।आचार्य श्री ने साधकों को ‘‘सोह्म’’ ध्यान का प्रयोग करवाया और अनेक जिज्ञासाओं का समाधान किया। उन्होंने कहा कि ध्यान साधना से आंतरिक शांति, आत्मबल और जीवन में सकारात्मकता आती है।प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने अपने प्रवचन में चार प्रकार के ध्यान – दो पुद्गल और दो आत्मा के ध्यान – की व्याख्या की। उन्होंने समझाया कि जब शरीर पर कष्ट आए, तो इसे शरीर के साथ घटित मानें, आत्मा के साथ नहीं, क्योंकि यह पुराने कर्मों का उदय है।
युवा मनीषी श्री शुभम मुनि जी म.सा. ने ‘हे प्रभु चरणों में तेरे आ गए’ भजन की मधुर प्रस्तुति से वातावरण को भक्तिमय बना दिया।इस अवसर पर कामरेज से सुश्री निधि पिंटू जी कोठारी ने 10 दिन के उपवास का, और वर्धमान स्थाकवासी कामरेज महिला मंडल अध्यक्ष श्रीमती पिंकी संतोष जी कोठारी ने 36 आयंबिल का प्रत्याख्यान लिया। दोनों तपस्वियों का शिवाचार्य आत्म ध्यान फाउंडेशन की ओर से मोमेंटो, शॉल और माला द्वारा सम्मान किया गया।