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जैन धर्म का मूल सिद्धांत जड़ और चेतन का भेद है- आचार्य डॉ. शिवमुनि

श्री आचारांग सूत्र प्रवचन में आत्मा की साधना पर जोर

सूरत।बलेश्वर स्थित जैन धर्मसभा में आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनि जी म.सा. ने श्री आचारांग सूत्र की व्याख्या करते हुए कहा कि भगवान का मार्ग सभी साधकों के लिए खुला है। जैन धर्म का मूल सिद्धांत “जड़ और चेतन का भेद” है, जिसे आत्मसाधना के प्रत्येक क्षण में अनुभव करना चाहिए। उन्होंने गजसुकुमाल मुनि के दृष्टांत के माध्यम से कर्म क्षय और तपस्या का महत्व बताया।

प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने श्री दशवैकालिक सूत्र के आठवें अध्याय पर प्रवचन देते हुए कहा कि साधु यदि किसी का उपहास करता है तो वह अधोगति का कर्म बांधता है। उन्होंने भाव हिंसा से बचने और आत्मा की समानता की दृष्टि अपनाने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि ध्यान और योग का महत्व जैन धर्म में प्राचीन काल से रहा है, जिसे आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया गया है।

युवामनीषी श्री शुभम मुनि जी म.सा. ने “वीर जपो महावीर जपो” भजन प्रस्तुत किया। मुंबई से नमन हितेश मेहता ने 17 उपवास के प्रत्याख्यान लिये। देशभर से श्रद्धालु धर्मसभा में उपस्थित हुए। श्री अशोक मेहता ने सभी आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया।

आज की सभा मे सिरसा,जम्मू दिल्ली आदि देश के विविध क्षेत्रो के श्रद्धालुओं ने आचार्य प्रवर के दर्शनार्थ उपस्थित हुवे।अशोक मेहता ने अतिथियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की।

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