गुजरातसामाजिक/ धार्मिकसूरत सिटी

“संपत्ति की आसक्ति और पुण्य का रहस्य” – शाश्वतसागर जी

कुशल दर्शन दादावाड़ी, पर्वत पाटिया में आयोजित सर्वमंगलमय चातुर्मास-2025 के अंतर्गत, परम पूज्य खरतरगच्छाचार्य संयम सारथी, शासन प्रभावक श्री जिनपियूषसागर सूरीश्वर जी म.सा. के शिष्य, पूज्य शाश्वतसागर जी म.सा. ने आज श्रद्धालुजनों को पुण्य, आत्मचिंतन और आध्यात्मिक मूल्यों पर गहनता से विचार करने के लिए प्रेरित किया।
मुनिश्री ने सुख और दुःख के रहस्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जीवन की ये दोनों अवस्थाएँ व्यक्ति के पुण्य के उदय पर निर्भर करती हैं। उन्होंने सुख के क्षणों को विवाह की बारात के समान बताया, जहाँ आनंद और उत्सव होता है और बाराती घोड़े के आगे नाचते है ।जबकि दुःख के समय को किसी स्वर्गवासी के पीछे चलने वाले समाज के समान बताया, जहाँ विषाद व्याप्त होता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह अंतर केवल पुण्य के क्षीण होने या संचित होने से आता है।
मुनिश्री शाश्वतसागर जी ने पुण्य की वृद्धि के मूल सूत्र के रूप में लक्ष्मी के सदुपयोग पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति अपनी संपत्ति का सदुपयोग देव, शास्त्र और गुरु के कार्यों में करता है, वही समाज में यशस्वी होता है। उनके अनुसार, देवद्रव्य की रक्षा करना, उसका संयमित उपयोग करना और योग्य संस्थाओं को दान देना ही पुण्य संचित करने का सबसे श्रेष्ठ मार्ग है। चार कषायों – क्रोध, मान, माया और लोभ – में से मुनिश्री ने लोभ को सबसे घातक बताया। उन्होंने समझाया कि लोभ भीतर छिपा रहता है और सबसे अंत में समाप्त होता है, इसीलिए जीवन में बार-बार आत्मावलोकन करना आवश्यक है, यह जानने के लिए कि ‘क्या मैं धन का स्वामी हूँ, या वह मेरा स्वामी बन गया है?’
प्रवचन का सार-संदेश यह रहा कि धन से सेवा करने पर पुण्य बढ़ता है, जबकि धन से अहंकार होने पर पुण्य घटता है। मुनिश्री के अनुसार, देवद्रव्य की रक्षा, संयमित आचरण और निरंतर आत्ममंथन ही सच्चा धर्म है।
इसी क्रम में, पूज्य समर्पितसागर जी म.सा. ने ऐतिहासिक प्रसंगों के माध्यम से जीवन की गहराइयों और पुण्य-पाप के रहस्यों का विवेचन किया। उनका वक्तव्य भावनाओं को झकझोरने वाला और आत्मा को जागृत करने वाला रहा। उन्होंने बताया कि जब हम इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठों को पलटते हैं, तो पाते हैं कि अच्छा कुल और अच्छा जीवन पुण्य के प्रताप से ही मिलता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि “जिसके मन में समर्पण, स्वभाव में शांति और आत्मा में संवेदना हो – वही सच्चा पुण्यात्मा है।” उनके अनुसार, जीवन में हमें ऐसे भावों को आत्मसात करना चाहिए जो न केवल हमें, बल्कि पूरे समाज को प्रकाश दें।
संघ के वरिष्ठ सदस्य चम्पालाल बोथरा ने बताया कि आज बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे और उन्होंने जीवन में पुण्य के महत्व को समझते हुए लोभ और अहंकार के त्याग को जीवन में कम करने का संकल्प लिया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button