सामायिक से कर्मबंधन रुकता है : जैनाचार्य डॉ. श्री शिवमुनि

सूरत। आत्मज्ञानी सद्गुरुदेव आचार्य सम्राट पूज्य डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. ने आचारांग सूत्र के वाचन के दौरान अपने प्रवचन में फरमाया कि जो अपनी आत्मा को जान लेता है, वही सम्पूर्ण लोक को समझ सकता है। उन्होंने कहा कि लोक में सात नरक, मध्यलोक, 26 देवलोक तथा इनके ऊपर सिद्धशिला स्थित है। आत्मा का सच्चा ज्ञान व्यक्ति को जीवन की वास्तविकता का बोध कराता है और कर्म के अनुसार जो भी प्राप्त होता है, उसे सहजता से स्वीकार करने की शक्ति देता है।
समान आत्मदर्शन ही मुक्ति का मार्ग
आचार्य श्री ने कहा कि जिसने आत्मा के स्वरूप को जान लिया वह पद-प्रतिष्ठा, वैभव, छोटा-बड़ा जैसे भेदभाव से मुक्त हो जाता है। ‘सोऽहम’ साधना के माध्यम से वह यह अनुभव करता है कि जो आत्मा सिद्धों में, देवों में, नरकों में या पशु-पक्षियों में है, वह सभी में समान रूप से विद्यमान है।
सामायिक से रुकता है कर्म बंधन
सामायिक सूत्र की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि सामायिक करने से कर्म बंधन रुक जाता है। सामायिक में मन, वचन और काया से भूत, भविष्य और वर्तमान काल के चिंतन का त्याग कर केवल आत्मभाव में स्थित होना होता है। सामायिक के समय 27 प्रकार के कर्म बंधन के कारणों का त्याग करने से आत्मा पर नए कर्मों का बंधन नहीं होता।
दृष्टि बदलें, जीवन बदले : शिरीष मुनि
प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने कहा कि भेदज्ञान द्वारा जड़ और जीव का भेद कर आत्मा में स्थित होना साधना का लक्ष्य है। अनादिकाल से 84 लाख योनियों की जो यात्रा चल रही है, उसे विराम देने का उपाय है दृष्टि बदलना। कर्म दृष्टि में व्यक्ति संसार के भेद देखता है, जबकि आत्मदृष्टि में सबमें समान आत्मा का अनुभव करता है और मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होता है।
सुमधुर भजन से गुंजा सभा परिसर
सहमंत्री श्री शुभम मुनि जी म.सा. ने “प्रभु मुझको आत्मज्ञान मिले, श्री वीतराग विज्ञान मिले” भजन की सुमधुर प्रस्तुति दी। इस अवसर पर श्री शौर्य मुनि जी म.सा. के 9 दिन के उपवास का प्रत्याख्यान हुआ। पुणे से आदीनाथ ग्रुप की 16 बहुमंडली बहनें गुरु दर्शन हेतु उपस्थित रहीं।
तपस्वियों का प्रत्याख्यान और श्रद्धालुओं की उपस्थिति
सभा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। कई श्रावक-श्राविकाओं ने अपनी-अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान कर धर्म लाभ लिया। संपूर्ण कार्यक्रम आध्यात्मिक वातावरण में शांतिपूर्वक संपन्न हुआ।