पवित्रता में बाधक बनती है कुटिलता : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

-सप्तदिवसीय शाहीबाग का प्रवास सुसम्पन्न कर गतिमान हुए ज्योतिचरण
-साध्वीप्रमुखाजी ने भी जनता को किया उद्बोधित
-श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य की अभिवंदना में दी भावनाओं को अभिव्यक्ति
04.07.2025, शुक्रवार, मोटेरा, अहमदाबाद।
जन-जन के मानस को अपनी अमृतवाणी से अभिसिंचन प्रदान करने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी शाहीबाग तेरापंथ भवन में सप्तदिवसीय प्रवास सुसम्पन्न करने के उपरान्त अपनी धवल सेना के साथ पुनः उपनगरों को पावन करने के लिए शुक्रवार को गतिमान हुए। हालांकि आचार्यश्री गुरुवार को ही मंगल प्रवचन के उपरान्त तेरापंथ भवन से शाहीबाग में स्थित सागर सदन में पधार गए थे। मार्ग में स्थान-स्थान पर उपस्थित श्रद्धालुओं को दर्शन देते, उन्हें यथावसर मंगल आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री निर्धारित गंतव्य की ओर बढ़ते जा रहे थे। मार्गसेवा में उपस्थित श्रद्धालुओं की विशाल संख्या सहज ही जुलूस का रूप ले चुकी थी। श्रद्धालुओं की भावनाओं को परिपूर्ण करते हुए आचार्यश्री शुक्रवार को मोटेरा- उत्तर के नवीन तेरापंथ भवन में पधारे। आचार्यश्री के मंगल आशीर्वाद से ही इस भवन को लोकार्पण भी किया गया।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालु जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्र में बताया गया कि निर्वाण को कौन प्राप्त कर सकता है? उत्तर प्रदान करते हुए कहा गया कि जिसके जीवन में धर्म होता है, वह निर्वाण को प्राप्त कर सकता है। दूसरा प्रश्न उठा कि धर्म किसके जीवन में होता है? उत्तर दिया गया कि जो शुद्ध होता है, उसके जीवन में धर्म होता है। तीसरा प्रश्न हुआ कि शुद्ध कौन होता है? अथवा किसका जीवन शुद्ध होता है? उत्तर दिया गया कि जो ऋजु, सरल होता है, उसके शोधि होती है। सरलता के बिना शुद्धि का होना कठिन होता है। प्रायश्चित्त लेना है तो, ऋजुता हो, सरलता हो तो दोषों की विशोधि हो सकती है। अपनी आत्मा को शुद्ध बनाना है तो अपने दोषों को प्रायश्चितप्रदाता से नहीं छिपाना चाहिए। सच्चाई की साधना करनी है तो सरलता का होना बहुत आवश्यक है। सरलता व सच्चाई के साथ निर्भिकता होनी चाहिए।
कुटिलता पवित्रता में बाधक बनती है। आदमी को अपने जीवन में सरलता और निष्कपटता का विकास करने का प्रयास होना चाहिए। सरलता के साथ समझदारी भी होती है। आदमी कोई भी धंधा करे, बिजनेस करे, लेनदेन करे, उसमें ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए। विश्वास और ईमानदारी व्यवहार में रहे। दूसरों के चीजों को अपने पास रखने की भावना न हो। कुटिलता, छल आदि व्यवहार पाप कर्म का बंध कराने वाले होते हैं। कर्म करने वाले को उन पाप कर्मों का फल भी भोगना होता है तो आदमी को पाप कर्मों से यथासंभव बचने का प्रयास करना चाहिए।
किसी का बुरा करने की भावना से झूठा आरोप लगाने से बचने का प्रयास करना चाहिए। ऋजुता को प्राप्त करने के लिए आदमी को माया का परित्याग करने का प्रयास करना चाहिए। माया-मृषा से जितना बचाव हो सकता है, जीवन में शुद्धता रह सकती है। जो सत्य बोलता है, उस पर लोगों का विश्वास भी होता है। इसलिए जहां तक संभव हो सत्य बोलने का प्रयास हो। जीवन में सरलता होती है तो वहां पवित्रता का निवास भी हो सकता है।
आचार्यश्री ने आज गुरुदर्शन करने वाली साध्वियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। तदुपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री के स्वागत में मोटेरा-उत्तर सभा के अध्यक्ष श्री मुकुनचंद भंसाली व सभा मंत्री श्री प्रकाश बैद ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। मुमुक्षु मोक्षा बडेरा ने अपनी प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी। श्री केतनभाई, श्री महावीर ढेलड़िया, श्री विमल घीया, श्री जसराज बुरड़ ने अपनी अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल व तेरापंथ कन्या मण्डल ने संयुक्त रूप से अपनी प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी एक और भावपूर्ण प्रस्तुति दी। बालिका खुशी गोठी ने अपनी बालसुलभ प्रस्तुति दी। स्थानीय तेरापंथी सभा की ओर से गितिका को प्रस्तुति दी गई।