वर्तमान को निर्मल बनाने का प्रयास करे मानव : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ कन्या मण्डल के 21वें अधिवेशन ‘आस्था’ जुटी हैं 500 से अधिक कन्याएं

-संस्कार, शक्ति व सुरक्षा की समवाय बनें कन्याएं : युगप्रधान आचार्यश्री
-कन्याओं को साध्वीप्रमुखाजी दिया मंगल आशीर्वाद
05.08.2025, मंगलवार, कोबा, गांधीनगर (गुजरात) :जन-जन के मानस को आध्यात्मिक राह दिखाने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अधिवेशनों, सम्मेलनों के आयोजनों का क्रम निरंतर जारी है। सोमवार से युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में तेरापंथ कन्या मण्डल के 21वें वार्षिक अधिवेशन का शुभारम्भ हुआ। ‘आस्था’ थीम पर आधारित इस अधिवेशन में देश के लगभग 113 क्षेत्रों से 500 कन्याएं संभागी बनी हुई हैं। मंगलवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में श्रद्धालुओं के साथ आज कन्याओं की भी विराट उपस्थिति थी।
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित विशाल जनमेदिनी को ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि जिसका कोई प्रारम्भ नहीं और अंत नहीं, उस चीज में मध्य भाग भी नहीं हो सकता। मध्य और वर्तमान होता है तो उसका कोई अतीत या अनागत प्रायः होने की संभावना की जा सकती है। नमस्कार महामंत्र का मध्यवर्ती पद्य है- ‘णमो आयरियाणं’ इसके आगे भी पद्य हैं और पीछे भी पद्य हैं। आदमी को अतीत की स्थितियों को बहुत ज्यादा याद करने और भविष्य के भोगों की आशंका कर लेने से वह वर्तमान में भी भोग की आशंका रह सकेगी। अतीत में अनंतकाल बीत गया है, भविष्य का अनंतकाल भी आगे है तो उसका मध्यवर्ती भाग वर्तमान भी है। इसी प्रकार जवानी है तो कभी बचपन भी रहा होगा और आगे भी कभी बुढ़ापा भी प्राप्त होगा।
आदमी के भीतर विषय, कषाय, लालसा रहती है। अतीत में भी आदमी के भीतर कषाय रहा है और कषाय आगे भी रह सकता है। अध्यात्म की साधना में भोगों की आशंसा भी करना त्याज्य है। अतीत का कर्म वर्तमान की हिंसा का कारण बनता है और वर्तमान में हिंसा की जा रही है तो वह भविष्य के लिए पाप कर्म का बंध हो रहा है। यदि अतीत के पापकर्म का बंध न हो तो वर्तमान में भी आदमी हिंसा में नहीं जा सकता। अतीत में कषाय रहता है तो वर्तमान में भी कषाय होता है और भविष्य में भी कषाय रह सकता है!
गृहस्थ जीवन में देखा जाए तो किसी युवा का बचपन भी देखा जा सकता है और उसके आगे की प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था कैसा रहेगा, देखा जा सकेगा। यदि आदमी वर्तमान समय में संयम करता है, धर्म-ध्यान करता है, नशे से मुक्त रहना, गलत व्यवसनों से मुक्त रहने का प्रयास करता है तो उसके अच्छे कार्यों का आगे अच्छे फल भी प्राप्त हो सकते हैं। आदमी को वर्तमान में धर्मयुक्त कार्य करने का प्रयास हो। आदमी को अपनी सक्षमता का लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। किसी जीव का पुनर्जन्म है तो पूर्वजन्म भी थे और इस जीवन के बाद भी कहीं जन्म होगा। मध्य है तो पूर्व और पश्चात तो होना अवश्यम्भावी है। इसलिए आदमी को वर्तमान समय को निर्मल रखने और वर्तमान समय का अच्छा उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने ‘आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित ग्रंथ ‘तेरापंथ प्रबोध’ के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने अनेक तपस्वियों को उनकी तपस्या का प्रत्याख्यान करवाया।
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में तेरापंथ कन्या मण्डल के 21वें त्रिदिवसीय अधिवेशन ‘आस्था’ के मध्य दिन संभागी कन्याएं पूज्य सन्निधि में मंचीय कार्यक्रम के लिए उपस्थित थीं। इस संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सरिता डागा, राष्ट्रीय कन्या मण्डल प्रभारी श्रीमती अदिति सेखानी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। अभातेमम की पदाधिकारियों द्वारा प्रतिवेदन भी पूज्यचरणों में प्रस्तुत किया गया। तेरापंथ कन्या मण्डल-अहमदाबाद द्वारा आस्था गीत को प्रस्तुति दी गई।
तेरापंथ धर्मसंघ की नवमी साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने समुपस्थित कन्याओं को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कन्याओं को सकारात्मक सोच, सहिष्णुता का विकास करने और जीवन को प्रकाशमय बनाने की प्रेरणा प्रदान की। तदुपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित कन्याओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि वर्तमान में आचार्यश्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष चल रहा है। इस समय में जितना संभव हो सके तप, स्वाध्याय, जप आदि करने का प्रयास करना चाहिए। ये बालिकाएं इस वर्ष में आचार्यश्री भिक्षु के संदर्भ में स्वाध्याय करने का प्रयास करें। ‘तेरापंथ प्रबोध’ को कंठस्थ करने का प्रयास किया जा सकता है। बालिकाओं में धार्मिक विकास भी होना चाहिए। संस्कार अच्छे रहें, शक्ति अच्छी रहे और शक्ति का अच्छे कार्यों में होता रहे। कन्याओं में संस्कार आएं और उनकी सुरक्षा भी होती रहे