प्रत्येक प्राणी में जीव को देखने से आत्मार्थी बन आत्मकल्याण संभव है-आचार्य सम्राट शिवमुनि जी
पर्युषण महापर्व 20 अगस्त से प्रारंभ

सूरत। आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. ने आज के प्रवचन में त्रसकाय जीवों का विस्तार से वर्णन करते हुए फरमाया कि त्रसकाय के जीव एक-दूसरे से बचने का प्रयास करते हैं जैसे चूहा-बिल्ली, सर्प आदि। कोई भी जीव मरना नहीं चाहता। अण्डज जीवों में हंस, कबूतर, मोर आते हैं, वहीं जरायुज जीवों में हाथी, भैंस, गाय आदि हैं। खाद्य पदार्थों में दही दोपहर के बाद खट्टा हो जाता है क्योंकि उसमें असंख्य जीव उत्पन्न होते हैं। शरीर के पसीने से जूं पैदा होती है तथा कुछ जीव भूमि को छेदकर भी उत्पन्न होते हैं। नरक के जीव कुंभी से बाहर आकर भीषण कष्ट सहते हैं। ये सभी जीव एक स्थान से दूसरे स्थान तक जा सकते हैं, किंतु वृक्षादि वनस्पतिकाय जीव स्थिर रहते हैं।
आचार्य श्री ने श्री आचारांग सूत्र का उल्लेख करते हुए कहा कि संसार में परिभ्रमण करने वाला जीव मंद बुद्धि के समान है। जिसे जीव-अजीव का भेद नहीं और आत्मा का बोध नहीं है, वह चाहे कितना ही ज्ञानी क्यों न हो, मंदबुद्धि है। व्यक्ति का सबसे अधिक मोह अपने शरीर से होता है, जिसे तोड़कर आत्मा में स्थित होकर खुली आंखों से ध्यान करना चाहिए। प्रत्येक प्राणी में जीव को देखने से आत्मार्थी बन आत्मकल्याण संभव है।
प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने गुरु-शिष्य संबंध पर कहा कि अहंकारी शिष्य अकड़ वाला होता है और गुरु को अप्रसन्न करता है, जिससे वह स्वयं भी भीतर से प्रसन्न और सुखी नहीं हो सकता। जबकि विनम्र शिष्य गुरु को प्रसन्न रखता है और धर्म के मार्ग पर सुखी जीवन जीता है। धर्म का मूल विनय है और यही विनय व्यक्ति को मोक्ष तक ले जाने वाला है।
युवामनीषी श्री शुभम मुनि जी म.सा. ने ‘‘धीरे-धीरे मोड़ तू इस मन को’’ सुमधुर भजन प्रस्तुत किया।
आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. के सान्निध्य में 20 अगस्त से 27 अगस्त तक पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व का आयोजन होगा। इस दौरान ध्यान साधना, नवकार महामंत्र का अखण्ड जाप और धर्माराधना का विशेष क्रम रहेगा, जिसमें बाहर से भी अनेक श्रावक-श्राविकाएं शामिल होकर अपने कर्मों को हल्का करेंगे।