गुजरातसामाजिक/ धार्मिकसूरत सिटी

मनोज्ञ इन्द्रियों के प्रति रागभाव नहीं रखना चाहिए-शिरीष मुनि जी म.सा.

कोई भी पंथ हो सत्य सबके लिए एक ही है-आचार्य डॉ.शिवमुनि जी

आत्म भवन, बलेश्वर, सूरत।आचार्य भगवन उद्बोधन नहीं देकर आज की सभा को आत्म ध्यान के प्रयोग एवं दर्शन लाभ प्रदान कर श्रावक-श्राविकाओं को लाभान्वित किया।

आज का उद्बोधन श्रमण संघीय प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. एवं सहमंत्री श्री शुभम मुनि जी म.सा. का हुआ।
प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में फरमाया कि जिस तरह से मुर्ग के बच्चे से भय होता है वैसे ही साधु को स्त्री शरीर का खतरा रहना चाहिए वैसे ही साध्वी के लिए पुरुष शरीर से खतरे का भय ब्रह्मचर्य पालन में सहायक है। साथ ही स्त्रियों से साधु व पुरुषों से साध्वियों को मधुर भाषण नहीं करना चाहिए। मनोज्ञ इन्द्रियों के प्रति रागभाव नहीं रखना चाहिए।

पुद्गल का यह शरीर अनित्य है बदल रहा है। आज मनोज्ञ है कल अमनोज्ञ हो सकता है। व्यक्ति वस्तु स्थान परिवर्तन उसका धर्म है उसमें बदलाव आ रहा है इसलिए शरीर के प्रति राग भाव नहीं होना चाहिए।

उन्होंने आगे फरमाया कि पंचम आरे में अहिंसा नाम से अनेक सम्प्रदाय खड़े हुए हैं। कोई भी पंथ हो सत्य सबके लिए एक ही है, सत्य है मैं आत्मा हूं। आत्मा था और रहूंगा, जिसकी आत्मा पर श्रद्धा नहीं है, जड़ अर्थात् पुदगल में साता ढूंढ रहे हैं, केवलियों की दृष्टि से जड़ को जड़ और जीव को जीव का स्थान दो। सोने को शुद्ध करने के लिए अग्नि में तपाया जाता है वैसे ही तपस्या के द्वारा बाहर के पुद्गल तपेंगे जिससे मोह में कर्म जो बांधे है वे क्षय होंगे। राग से कार्मण शरीर बढ़ता है। मेरे पास मेरे अलावा कुछ नहीं मैं तो जीव आत्मा हूं, मेरा कोई नहीं है, कौन व्यक्ति मेरा, मैं आत्मा हूं, आकार में निराकार के दर्शन करो।

युवा मनीषी श्री शुभम मुनि जी म.सा. ने “वेला अमृत गया, आलसी सो रहा, बन अभागा साथी सारे जगे तु ना जागा” सुमधुर भजन की प्रस्तुति देते हुए फरमाया भजन की पंक्तियां कहती है कि अन्दर से जागरण हो ? जब किसी व्यक्ति को पूछा जाता है कि धर्माराधना करते हो क्या ? तो उनका उत्तर प्रायः यह रहता है कि महाराज ! समय नहीं है? सामायिक, माला, जाप, संवर, प्रतिक्रमण का कहते हैं तो कहते हैं समय नहीं है, समय तो है किंतु समय का प्रबंधन नहीं है, रूचि नहीं है। यदि समय का प्रबंधन और रूचि हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। जो समय भेद ज्ञान में नहीं लग रहा है तो समझना चाहिए वह समय कर्म बंधन में जा रहा है। धर्ममय अवस्था नहीं है, बर्धन तो बंधन है। जो व्यक्ति वर्तमान समय में अगर आ गया है तो समझना चाहिए कि वह धर्म धर्ममय जीवन में आ गया है, इसलिए धर्ममय जीवन के लिए वर्तमान क्षण को महत्त्व देकर वर्तमान स्थिति में रहने का प्रयास करना चाहिए।

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