गुजरातसामाजिक/ धार्मिकसूरत सिटी

महाभय का हेतु है परिग्रह : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

-अपरिग्रह की साधना की दिशा में आगे बढ़ने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित

-‘तेरापंथ प्रबोध’ आख्यान के श्रवण से लाभान्वित हुए श्रद्धालु

-जनता को साध्वीवर्याजी ने किया सम्बोधित

18.08.2025, सोमवार, कोबा, गांधीनगर।कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में चतुर्मासरत जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में नित नवीन कार्यक्रम के साथ-साथ विभिन्न गणमान्य लोगों का भी पहुंचना हो रहा है। सभी गणमान्य यथावसर आचार्यश्री के दर्शन के साथ-साथ आपके पावन पाथेय से भी लाभान्वित हो रहे हैं। आचार्यश्री नित्य प्रति श्रद्धालुओं को आगम की वाणी के माध्यम से जीवनोपयोगी प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं। आचार्यश्री की कल्याणीवाणी का श्रवण कर श्रद्धालु अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं। वहीं कितने-कितने श्रद्धालु अपने महातपस्वी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में नित्य प्रति अपनी धारणानुसार अपनी-अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान कर अपने जीवन को धर्म और अध्यात्म से भावित बना रहे हैं।

सोमवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतमयी वाणी से ‘आयारो’ आगम में वर्णित श्लोकों को व्याख्यायित करते हुए कहा कि परिग्रह परिग्रही व्यक्ति के लिए महाभय का हेतु होता है। जहां परिग्रह है, वहां भय को भी पनपने का अवसर मिल सकता है। धन की उपलब्धि हो गई है तो धन को कोई हड़प न ले, ऐसा भय भी आदमी के मन में हो सकता है। जहां परिग्रह है, वहां मूर्च्छा और भय भी हो सकता है। परिग्रह तीन प्रकार का बताया गया है- शरीर, कर्म और पदार्थ। शरीर के प्रति मूर्च्छा होती है तो शरीर भी एक प्रकार का परिग्रह बन जाता है। लगा हुआ कर्म भी परिग्रह होता है और पदार्थों के रूप में प्राप्त चीजें भी परिग्रह होती हैं। पदार्थ और शरीर के प्रति मोह व मूर्च्छा का जो भाव होता है, मुख्यतया परिग्रह बन जाता है। परिग्रह के साथ भय का योग भी हो जाता है और यह भय की स्थिति आदमी को मोक्ष की दिशा को बाधित कर देता है। साधु के जीवन में तो अपरिग्रह का नियम होता है। साधु का जीवन परिग्रह से मुक्त होता है, यह उसके लिए बहुत बड़ी साधना है।

साधु बन जाने के बाद साधु को अन्य परिग्रहों के प्रपंच से बचने का प्रयास करना चाहिए। साधु को अपने पंच महाव्रतों का पालन जागरूकतापूर्वक करने का प्रयास होना चाहिए। आगम में एक संदेश दिया गया है कि जिसे अपने शरीर के प्रति भी ज्यादा मोह-मूर्च्छा है, वह भी एक प्रकार का परिग्रह हो जाता है। इसलिए साधु को शरीर के प्रति भी ज्यादा मोह-मूर्च्छा रखने से बचने का प्रयास करना चाहिए।

संसार में भौतिक चीजों की कोई गिनती नहीं हैं। परिग्रह से भरा भौतिकता के इस संसार का आध्यात्मिकता के जगत से कोई मेल नहीं खाता। यह अपरिग्रह की साधना की साधु और गृहस्थ में अंतर दर्शाने वाला होता है। यह बहुत बड़ा अंतर होता है। इसलिए सामान्य आदमी को भी जहां तक संभव हो सके परिग्रहों का कम करने का प्रयास करना चाहिए।

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित ‘तेरापंथ प्रबोध’ की आख्यान शृंखला को आगे बढ़ाया। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन व आख्यान के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी समुपस्थित जनता को उद्बोधित किया। अहमदाबाद के पूर्व मेयर श्री गौतमभाई शाह ने आचार्यश्री के दर्शन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button