गुजरातधर्मसामाजिक/ धार्मिक

कठिन मार्ग पर चलते हैं वीर पुरुष : महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री ने भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर बढ़ने को किया अभिप्रेरित

 साध्वीवर्याजी ने भी जनता को किया उद्बोधित

तेरापंथ ग्लोबल समिट के अंतर्गत दुबई ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने दी श्रीचरणों में प्रस्तुति

समागत अप्रवासी तेरापंथी सदस्यों ने दी भावनाओं को अभिव्यक्ति

कोबा, गांधीनगर, गुजरात 

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रविवार को प्रेक्षा विश्व भारती में बने भव्य एवं विशाल प्रवचन पण्डाल में समुपस्थित विशाल जनमेदिनी व अप्रवासी तेरापंथी सदस्यों को ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि एक मार्ग दुर्गम तो कोई मार्ग सुगम होता है। किसी-किसी मार्ग पर चलना कठिन और तो किसी मार्ग पर चलना बहुत आसान होता है। नेशनल हाईवे जो अच्छा बना हुआ है, वहां चलना अथवा वाहनों का दौड़ना आसान होता है। कहीं ऊबड़-खाबड़ और कंकड़-पत्थर से युक्त कंटिला मार्ग मिल जाए और किसी को नंगे पांव चलना हो तो उस मार्ग पर चलना बहुत ही मुश्किल हो सकता है। इस प्रकार दो प्रकार के मार्ग हो जाते हैं। इसी प्रकार जीवन में भी दो पथ होते हैं- एक है अध्यात्म का पथ और दूसरा है भौतिकता का पथ। अध्यात्म का पथ प्रथम द्रष्टया कठिन लग सकता है। वहीं भौतिकता का पथ जहां सुख-सुविधाएं, विषय-भोग से युक्त होता है तो लोगों के लिए रुचिकर लग सकता है। अध्यात्म का मार्ग थोड़ा कठिन तो होता है, किन्तु उसकी मंजिल बहुत अच्छी होती है।

हालांकि मार्ग का महत्त्व तो हो सकता है, किन्तु उससे ज्यादा महत्त्व मंजिल की होती है। अगर मंजिल उत्तम है तो थोड़ा चलने में कठिन मार्ग हो तो भी उस पर आदमी को चलने का प्रयास करना चाहिए। अगर मंजिल सही न हो और बढ़िया रास्ता हो तो भी उस रास्ते पर आगे नहीं बढ़ना चाहिए। आगम में बताया गया कि जो वीर पुरुष होते हैं, वे कठिन मार्ग पर चलते हैं। संयम और अध्यात्म का मार्ग कठिन होता है। साधु-साध्वियां दीक्षित होते हैं और वे जीवन भर के लिए संयम व महाव्रतों के मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।

भौतिकता का मार्ग तत्काल रूप में सुखद लग सकता है, लेकिन आगे उसकी गति उतनी अच्छी नहीं हो सकती। अध्यात्म के मार्ग की मंजिल बहुत अच्छी होती है। इसलिए आदमी को अध्यात्म की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने अपने जीवन के उस प्रसंग को भी वर्णित किया, जब आचार्यश्री ने बचपन में ही अध्यात्म के दुर्गम मार्ग पर चलने का निर्णय किया था। तदुपरान्त आचार्यश्री ने पुनः प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को बढ़िया मंजिल देखकर उस ओर चलना चाहिए भले थोड़ा कठिन ही क्यों न हो। इस प्रकार आचार्यश्री ने संयम के मार्ग पर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने समुपस्थित जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री ने अनेक तपस्वियों को उनकी धारणा के अनुसार तपस्या का प्रत्याख्यान कराया। मुनि मदनकुमारजी ने नवरंगी तपस्या के संदर्भ में जानकारी व प्रेरणा प्रदान की।

आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा आयोजित द्विदिवसीय ‘तेरापंथ ग्लोबल समिट में उपस्थित अप्रवासी भारतीयों के साथ पधारे दुबई ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने उन बच्चों को मंगल आशीष और प्रेरणा प्रदान की। लन्दन से सम्मेलन में समागत श्री जीतूभाई ढेलड़िया व श्री सुनील दूगड़ ने अपनी-अपनी अभिव्यक्ति दी।

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