ज्ञान को ग्रहण करने वाला शिष्य स्पंज की तरह होता है : प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा.
आचार्य भगवन ने आत्म ध्यान से श्रद्धालुओं को किया लाभान्वित

बलेश्वर, सूरत।आचार्य भगवन ने आज की सभा को आत्म ध्यान के प्रयोग, तपस्वियों को पच्चखान एवं दर्शन लाभ प्रदान कर लाभान्वित किया। आज का उद्बोधन श्रमण संघीय प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म. सा. का एवं सहमंत्री श्री शुभम मुनि जी म.सा. का हुआ।
प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने श्री दशवैकालिक सूत्र के 9वें अध्ययन की गाथाओं का विवेचन करते हुए उद्बोधन में फरमाया कि जिसने जिनवाणी का एक शब्द भी आत्मसात कर लिया, उसमें जी लिया तो कार्य सिद्ध हो जाएगा। जिस श्रावक या संत के जीवन में आचरण नहीं है तो उसमें वचन में भी दम नहीं है। आचरण होगा तो उसके वचन में दम होगा।
उन्होंने आगे फरमाया कि जो शिष्य अध्ययन, सेवा व कर्म क्षय के समय सोया रहता है, प्रमाद करता है, गुरु की सेवा में रहते हुए विनम्रता नहीं है, विनय धर्म की शिक्षा नहीं ले रहा है तो वह शिष्य पत्थर की तरह होता है जो ज्ञान को ग्रहण नहीं कर सकता। जो शिष्य स्पंज की तरह होता है वह बहते हुए ज्ञान को ग्रहण कर लेता है। जो शिष्य गुरु में दोष कमियां देखता है, जब गुरु किसी बात के लिए टोकते हैं तो शिष्य बात-बात में गुस्सा करने लगता है, अकड़ रहता है, सहनशीलता नहीं है तो वह आगे नहीं बढ़ सकता। जिस शिष्य ने गुरु की, पुत्र ने माता-पिता की, बहु ने सास-ससुर की कठोरता को सहन कर लिया वह उनके ज्ञान को ग्रहण कर आगे बढ़ जाते हैं।
उन्होंने यह भी फरमाया कि जिस तरह से मोबाईल में अनावश्यक भरे संदेशों एक बटन द्वारा हटा सकते हैं वैसे ही ध्यान के द्वारा अनंत काल से भरे हुए मिथ्यात्व को मिटा सकते हैं, कर्मों को क्षय कर जीवन में शांति का अनुभव कर सकते हैं।
युवा मनीषी श्री शुभम मुनि जी म.सा.ने “मानव का यह जीवन तू सफल बना लेना” सुमधुर भजन की प्रस्तुति देते हुए फरमाया कि यह मनुष्य का जीवन कितना दुर्लभ है, मनुष्य जन्म मिला है तो व्यक्ति का लक्ष्य सकारात्मकता, सार्थकता, सम्यक्त्व प्राप्ति का होना चाहिए। मिथ्यात्व में व्यक्ति अनादिकाल से घुम रहा है, बहुत चक्कर लगा लिए। यह थकावट आए, ठहराव आए कि अब चार गति चौरासी लाख जीवायोनि का चक्र समाप्त कर धर्म मार्ग पर अग्रसर होना है। धर्म के मार्ग पर बढ़ने के लिए मनुष्य जन्म मिला है। इस मानव जीवन का सद्ययोग साधना-आराधना और मुक्ति में आगे बढ़ने के लिए करना है। सारे कार्य करते हुए निर्लेप रहेंगे तो निरंतर मुक्ति की ओर आगे बढ़ सकते हैं।
इस अवसर पर आज सुश्री उर्मिला विजय कुमार जी गन्ना ने 7 दिन के उपवास का प्रत्याख्यान लिया।साथ अपनी धारणा अनुसार कई श्रावक-श्राविकाओं ने उपासन, एकासन, आयंबिल का प्रत्याख्यान लिया। धर्म सभा में कोटा, संगमनेर, आश्वि, पूणे आदि स्थानों से श्रद्धालु उपस्थित रहे।