छरिपालित संघ: भक्ति, त्याग और मोक्षमार्ग का अनूठा संगम:-

बाड़मेर जैन श्री संघ द्वारा आयोजित सर्वमंगलमय वर्षावास 2025 में, खरतरगच्छाचार्य श्री जिनपीयूष सागर जी म.सा. के मंगल गीत के साथ प्रवचन श्रृंखला का आरंभ हुआ। इस अवसर पर मुनि श्री शाश्वतसागर जी और मुनि सत्वरत्न सागर जी ने छरिपालित संघ और त्याग की महिमा पर प्रकाश डाला।
भक्ति, त्याग और तप की त्रिवेणी मुनि श्री शाश्वतसागर जी ने प्रवचन में कहा कि जैन धर्म में इच्छाओं का त्याग ही आत्मा के उत्थान का सर्वोच्च मार्ग माना गया है। यह त्याग भक्ति और तप के माध्यम से संभव होता है। उन्होंने राजा भरत चक्रवर्ती का उदाहरण देते हुए बताया कि उन्होंने इतिहास का पहला छरिपालित संघ निकाला था, जिसके फलस्वरूप उन्होंने अपनी सभी इच्छाओं का त्याग कर केवलज्ञान प्राप्त किया।
उनके मार्ग का अनुसरण करते हुए, वस्तुपाल-तेजपाल, अनुपमा देवी, ललिता देवी और दासी शोभना जैसी अनेक महान विभूतियों ने 32 लाख स्वर्ण मुद्राओं के आभूषण प्रभु के चरणों में अर्पित कर त्याग की अद्भुत मिसाल कायम की। छरिपालित संघ तीनों भक्तियों—देव, गुरु और धर्म—का लाभ देता है और मोक्षमार्ग की ओर ले जाता है।
त्याग: आत्मा की सर्वोच्च साधना
मुनि सत्वरत्न सागर जी ने भोग और त्याग के बीच के अंतर को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि भोग में डूबे सिकंदर और हिटलर जैसे नाम इतिहास में गुम हो गए, जबकि त्याग के मार्ग पर चलने वाले महावीर, बुद्ध और राम आज भी पूजनीय हैं।
उन्होंने जोर देकर कहा कि इंद्रियों पर विजय केवल त्याग और तप से ही संभव है। उन्होंने भगवान महावीर, गौतम गणधर और श्रीपाल राजा के तप का उल्लेख करते हुए बताया कि कठिन तप से न केवल आत्मिक शुद्धि होती है, बल्कि असाध्य रोगों पर भी विजय पाई जा सकती है, जैसा कि राजा श्रीपाल ने अयंबिल तपस्या से कुष्ठ रोग पर विजय पाकर सिद्ध किया था।
आचार्य श्री ने प्रदान किया मुहूर्त:-
इस मंगल अवसर पर आचार्य श्री जिनपीयूष सागर सूरीश्वर जी म.सा. ने अमरावती के जसवंतराज जी लुनिया परिवार के साथ पधारे 100 से अधिक गुरुभक्तों को अनंत सिद्धों की सिद्ध भूमि शत्रुंजय महातीर्थ के बारह गाऊ छरिपालित यात्रा संघ निकालने का मुहूर्त प्रदान किया। मुहूर्त मिलते ही पूरा प्रवचन पंडाल भक्ति और आनंद के वातावरण में झूम उठा। लुनिया परिवार ने सरल स्वभावी प पू प्रमोदिता श्री जी म सा आदि ठाना से वाक्षेप लिया ।
बाड़मेर जैन श्री संघ के वरिष्ठ सदस्य चम्पालाल बोथरा ने बताया कि इस कार्यक्रम में मास खमण से अधिक तपस्या करने वाले श्री घेवरचंद जी मेवाराम जी घीया (भियांड-सूरत) का भी बहुमान किया गया। बोथरा ने यह भी बताया कि स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में आचार्य श्री ने ‘जन-गण-मन जिन शासन और तपस्या पे गीत गाकर सभी को भावविभोर कर दिया।
अमरावती संघ के मेहमानों के बहुमान और तपस्वियों के अभिनंदन ने सभी को त्याग और तप की महिमा को अपने जीवन में अपनाने का अमूल्य संदेश दिया।