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बंधन और मुक्ति मानव के भीतर : मानवता के मसीहा महाश्रमण

-पर्युषण के दौरान विशेष धर्माराधना करने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित

-जगराओ के महाप्रज्ञ स्कूल के विद्यार्थियों ने पूज्य सन्निधि में दी प्रस्तुति

19.08.2025, मंगलवार, कोबा, गांधीनगर।जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के श्रीमुख से निरंतर प्रवाहित होने वाली अमृतवाणी का रसपान करने के लिए इस समय मानों पूरे देश भर से लोग उमड़ रहे हैं। लोगों की उपस्थिति से प्रेक्षा विश्व भारती परिसर पूरे समय गुलजार बना हुआ है। मंगलवार को आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जगराओं (पंजाब) के न केवल श्रद्धालुजन, अपितु वहां संचालित महाप्रज्ञ स्कूल के विद्यार्थी भी वर्ष 2029 में मर्यादा महोत्सव की अर्ज लेकर पहुंचे। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान स्कूल के विद्यार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी तो आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रेरणा प्रदान की।

मंगलवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को वीर भिक्षु के परंपर पट्टधर, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि यह भावों का जगत है। आसक्ति व मोह के कारण आदमी के भीतर अनेक प्रकार के भाव उभरते हैं। भावों से आदमी अधोगति को प्राप्त हो सकता है तो भावों से आदमी मोक्ष की दिशा में भी प्रस्थान कर सकता है। भावों से बंधन और भावों से आदमी मुक्ति की ओर अग्रसर हो सकता है। आसक्ति और मोह सघन होते हैं, हिंसा-झूठ का प्रयोग होता है, 18 पापों का उपभोग होता है तो आदमी अधोगति की ओर चला जाता है। भावों और आसक्ति के कारण पाप कर्मों का बंध होता है। आदमी इन पापों का सेवन करता है तो मानना चाहिए कि आदमी की आत्मा बंधन में जा रही है और 18 पापों से विरमण होता है, तो मानना चाहिए कि आत्मा मोक्ष की ओर अग्रसर है। आदमी को संवर और निर्जरा की साधना हो तो आदमी की आत्मा मोक्ष की ओर गति कर सकती है।

मिथ्यात्वी की करणी होती है, उससे थोड़ा लाभ तो मिल सकता है, किन्तु उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। सम्यक्त्वी को जो साधना का लाभ मिलता है, उतना मिथ्यात्वी को नहीं प्राप्त होता है। कषाय, आसक्ति, मोह आदमी को मिथ्यात्व की ओर ले जाने वाले होते हैं। संवर, निर्जरा आदि मोक्ष की ओर ले जाने वाले होते हैं। जहां तक संभव हो सके, आदमी को पाप कर्मों से बचने का प्रयास करना चाहिए। अपने जीवन में कुछ त्याग, तपस्या, संयम, व्रत आदि का पालन करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को भोजन में ऊनोदरी का अभ्यास भी करना चाहिए। उपवास होना मुश्किल हो तो आदमी को यथासंभवतया ऊनोदरी रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने जीवन में द्रव्यों की सीमा रखने का प्रयास करना चाहिए।

कल से पर्युषण प्रारम्भ हो रहा है। यह समय जप, तप, धर्म-ध्यान, साधना, स्वाध्याय आदि में लगाने का प्रयास करना चाहिए। इन आठ दिनों में आदमी को बराबर धर्म-ध्यान, साधना, आराधना, तप, त्याग आदि के द्वारा धार्मिक लाभ उठाने का प्रयास भी करना चाहिए। आठ दिनों तक सायं का प्रतिक्रमण प्रतिदिन करने का अभ्यास हो। यह भी एक धार्मिक अनुष्ठान है। इन दिनों में आदमी को जितना संभव हो सके, ज्यादा से ज्यादा तीन सामायिक हो। किशोर, युवा भी इस समय मंे प्रतिदिन एक सामायिक करने का प्रयास करना चाहिए। आठ दिनों तक प्रवचन आदि का भी श्रवण करने का अभ्यास होना चाहिए। बंधन से मुक्ति का उपाय है कि आसक्ति, कषायों व मोह को छोड़ दिया जाए।

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने ‘तेरापंथ प्रबोध’ आख्यान माला के क्रम को आगे बढ़ाया। मुनि राजकुमारजी ने गीत के माध्यम से तपस्या की प्रेरणा प्रदान की। मुनि मदनकुमारजी ने भी तपस्या के संदर्भ में जानकारी दी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में वर्ष 2029 में मर्यादा महोत्सव की अर्ज लेकर जगराओं से तेरापंथी श्रद्धालुओं का एक संघ पहुंचा हुआ था। सर्वप्रथम महाप्रज्ञ स्कूल-जगराओं के विद्यार्थियों ने आचार्यश्री के समक्ष गीत को प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रेरणा प्रदान की।

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