संसार के संयोगों का त्याग करने वाला होता है साधु : सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण
मुनि मदनकुमारजी ने दी अभिव्यक्ति, मुनि राजकुमारजी ने गीत का किया संगान

–चतुर्मास में अधिक धर्माराधना करने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
–समुपस्थित श्रद्धालुओं को साध्वीप्रमुखा जी ने भी किया उद्बोधित
20.07.2025, रविवार, कोबा, गांधीनगर।
यो तो कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती वर्तमान समय में धर्मनगरी बनी हुई है। देश-विदेश हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपने आराध्य की मंगल सन्निधि में धर्माराधना कर अपने जीवन को धर्ममय बना रहे हैं। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को प्रतिदिन आगमवाणी से पावन पाथेय प्रदान कर रहे हैं। अहमदाबाद ही नहीं, देश-विदेश से पहुंचने वाले श्रद्धालु भी ऐसे सौभाग्य को प्राप्त कर आह्लादित हैं। अनेकानेक तपस्वी अपनी-अपनी तपस्याओं के द्वारा महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के चरणों में अपने भक्तिभावों को समर्पित कर रहे हैं। लोगों की विशाल उपस्थिति रविवार को और अधिक प्रतीत होती है। सूर्योदय पूर्व से लेकर देर रात तक श्रद्धालु आचार्यश्री के प्रवास स्थल आदि के निकट ही बैठकर उनके दर्शन-सेवा का पूरा लाभ उठा रहे हैं।
रविवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में उपस्थित विशाल जनमेदिनी को तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान महासूर्य, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगमाधारित अपने मंगल प्रवचन के माध्यम से जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में दो मार्ग बताए गए हैं- एक संसार का मार्ग और दूसरा मोक्ष का मार्ग है। संसार का मार्ग जन्म-मरण की प्रक्रिया को बढ़ाने वाला है। दूसरा है मोक्ष का मार्ग। इस मार्ग पर आगे बढ़ने वाला आदमी जन्म-मरण की परंपरा से विप्रमुक्त हो जाता है। जो वीर पुरुष होते हैं, वे महापथ, महामार्ग पर आगे बढ़ते हैं। हाइवे पर वाहन तीव्र गति से चलते हैं और छोटे मार्गों पर वाहन सावधानी से चलाए जाते हैं। मोक्ष का मार्ग महायान है। इस मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए साधुता का मार्ग स्वीकार करना होगा और साधु बनने के आदमी को संयोग का त्याग करना होता है।
संसार में संबंध चलते हैं। माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची, पिता-पुत्र आदि-आदि। दीक्षा स्वीकार करने के लिए आदमी को संबंधों को छोड़ना पड़ता है। साधु सांसारिक संबंधों से ऊपर उठने वाला होता है। गृहस्थ जीवन में संबंधों को निभाना भी पड़ता है। उसके लिए श्रम और समय भी लगाना पड़ता है। साधु संबंधों से मुक्त होते हैं। साधु के मालिकाना में कोई संपत्ति नहीं होती। एक इंच जमीन भी साधु के स्वामित्व में नहीं होती। साधु भिक्षु होता है। हमारे तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य अनुशास्ता है। लोक के संबंध का वमन करने वाला साधु होता है। साधु धन को छोड़ देता है, परिवार को छोड़ देता है और तो क्या शरीर का बहुत ज्यादा मोह भी नहीं करता। वैसा साधु महायान पर चलने वाला होता है।
धर्म, ध्यान, स्वाध्याय, जप व तपस्या आदमी सभी धर्म के परिवार हैं। तपस्याओं के भी विभिन्न प्रकार हैं। अच्छे ग्रंथों को पढ़ना, उनके अर्थ को जानने आदि का प्रयास होता है। आचार्यश्री ने आगे कहा कि चतुर्मास में प्रवचन श्रवण और उस दौरान सामायिक आदि हो रही है तो धर्म का कितना अच्छा लाभ प्राप्त हो रहा है। इस प्रकार धर्म के सभी ढंग से आदमी को अपने धर्म का टिफिन तैयार कर लेने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, धार्मिक कार्यों को करने, शुद्ध आहार, शुद्ध विचार रहे तो कितना अच्छा धर्म की बात होती है। जितना संभव हो सके, आहार आदि में भी संयम रखने, पदार्थों का वर्जन करने का प्रयास होना चाहिए। धर्म के माध्यम से आदमी को मोक्ष प्राप्ति की कामना करने का प्रयास हो।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में प्रारम्भ होने वाली तपस्या के संदर्भ में मुनि राजकुमारजी ने गीत का संगान किया। मुनि मदनकुमारजी ने इस संदर्भ में लोगों को उत्प्रेरित किया। इसके उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित सिरियारी संस्थान से जुड़े लोगों ने अपने बैनर का अनावरण किया और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।