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महापुरुषों का जीवन प्रेरित करता है : आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनि जी

आचार्य सम्राट पूज्य श्री आनन्दऋषि जी म.सा. की 126 वीं जन्म जयन्ती तप त्याग से मनाई

बलेश्वर, सूरत।आचार्य सम्म्राट डॉ. श्री शिवमुनिजी म. सा. ने श्रमण संघीय द्वितीय पट्टधर आचार्य सम्राट पूज्य श्री आनन्दऋषि जी म. सा. की 126 वीं जन्म जयन्ती के अवसर पर उपस्थित धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए अपने उद्बोधन में फरमाया कि आज देशभर के अनेक जगहों पर सामुहिक तेले, आयंबिल आदि तप के माध्यम से आचार्यश्री जी की जन्म जयन्ती मना रहे हैं। आचार्य भगवन अपने गुरु के कठोर अनुशासन में रहे। वे हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत, फारसी, उर्दू आदि अनेक भाषाओं के जानकर थे। महापुरुषों की जयन्ती केवल औपचारिक रूप से मनाना महत्त्वपूर्ण नहीं है, महत्त्वपूर्ण है उनके जीवन से प्रेरणा लेना।

उन्होंने आगे फरमाया कि जिस तरह से गुलाब का फुल कांटों के बीच में खिलता है, परंतु वह सबको सुंगध बांटता है। उस गुलाब के फूल की अनेक विशेषता होती है, वह सुखने पर भी अपनी खुशबू प्रदान करता है। कमल कीचड़ में खिलता है किंतु उसके पत्ते कीचड़ को छूते नहीं है। जिस प्रकार रास्ते में आप जा रहे हैं सामने से यदि कोई

वाहन, पशु या कोई वस्तु है तो उससे व्यक्ति दूर हट कर रास्ता तय करता है, उसी प्रकार व्यक्ति के जीवन में अनेक समस्याएं आती है वह उन समस्याओं का निराकरण करते हुए आगे बढ़ता है।

आचार्यश्री जी का जीवन ऐसी अनेक परिस्थितियों से गुजरा, परन्तु उन्होंने उसमें अपना धर्म मार्ग प्रशस्त किया। श्रमण संघ को लम्बे समय तक उनका सान्निध्य प्राप्त हुआ। मैंने गृहस्थ अवस्था में, वैराग्य काल में एवं दीक्षा के बाद महाराष्ट्र प्रवास में उनका निकट से सान्निध्य प्राप्त किया। वे करुणा की प्रतिमूर्ति थे। उनकी आंखों में गंभीरता थी। वे समय के महत्त्व को जानने वाले थे। उनके सुकोमल हाथों का स्पर्श आज भी जब मैं उन स्मृतियों में जाता हूं तो मुझे रोमांचित कर देता है। ऐसे महापुरुष ने श्रमण संघ को सुदृढ़ और संगठित किया, हम सभी उन जैसा जीवन जीने का संकल्प लें तो जीवन में सच्चे आनन्द की प्राप्ति होगी।

प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में फरमाया कि आचार्य सम्राट आनन्द ऋषि जी म.सा. के जीव का पड़ाव 125 वर्ष पूर्ण होने पर तपस्या के द्वारा मना रहे हैं, जीव तो अजर-अमर अविनाशी है, जीव ने पड़ाव के समय क्या काम किया वह महत्त्वपूर्ण है। यदि आत्म परिग्रह का धर्म कार्य में उपयोग किया तभी जीवन की सार्थकता सिद्ध हो सकती है। यदि मनुष्य के जीवन आनन्द में नहीं है तो वह पर में है जीवन में शांति नहीं है तो विभाव में है। जिस समय स्वभाव में हो कुछ भी कार्य कर रहे हो, उस समय आप आनन्द में हो। सामायिक का प्रतिफल है कि हर समय आनन्द में रहें। आनन्द हमारा स्वभाव है, यदि आप आनन्द में हैं तो आचार्य सम्राट पूज्य श्री आनन्द ऋषि जी म. सा. की जन्म जयन्ती मनाना सार्थक होगा।

मधुर गायक श्री निशांत मुनि जी म.सा. ‘आनन्द गुरुवर थे आनन्द के धाम, आनन्द गुरुवर को शत्-शत् प्रणाम’ समधुर भजन की प्रस्तुति दी।
ऑनलाईन के द्वारा अनेक श्रावक श्राविकाओं ने आज सामुहिक तेले एवं सामुहिक आयंबिल के प्रत्याख्यान ग्रहण किये। मुंबई से नमन हितेश मेहता ने 16 उपवास के प्रत्याख्यान लिए

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