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लोभ की कोई सीमा नहीं होती, लेकिन भोग की निश्चित मर्यादा होती है- मुनि शास्वतसागर

सद्गुरु महिमा और लोभ त्याग पर चिंतनमयी धर्मसभा आयोजित

बाड़मेर जैन संघ द्वारा कुशल दर्शन दादावाड़ी में आयोजित वर्षावास में समर्पित सागरजी म.सा. और शाश्वतसागरजी म.सा. ने किया मार्गदर्शन

सूरत, पर्वत पाटिया। बाड़मेर जैन श्री संघ द्वारा पर्वत पाटिया स्थित कुशल दर्शन दादावाड़ी में आयोजित सर्वमंगलमय वर्षावास 2025 के अंतर्गत आज की धर्मसभा गहन आध्यात्मिक चिंतन और आत्म-सुधार के प्रेरक संदेशों से परिपूर्ण रही। खरतरगच्छाचार्य पूज्य श्री जिन पीयूषसागर सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य संयम सारथी पूज्य समर्पित सागरजी म.सा. और पूज्य शाश्वतसागरजी म.सा. ने श्रावक-श्राविकाओं को जीवन की दिशा और आत्मकल्याण की राह पर चलने का आह्वान किया।
धर्मसभा में पूज्य समर्पित सागरजी म.सा. ने सद्गुरु की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए एक प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि जब कोई भी बाह्य साधन – गंगा, चंदन या चांदनी – उपलब्ध न हो, तब जीवन में शांति और पापमुक्ति का एकमात्र साधन सद्गुरु का चरण होता है। उन्होंने बल दिया कि “सद्गुरु ही जीवन की सच्ची दिशा हैं, जिनके माध्यम से आत्मा मोक्ष की ओर अग्रसर होती है।”
उन्होंने ‘दूध और जीवन’ दृष्टांत के माध्यम से संगति और आत्मसमर्पण का महत्व समझाते हुए कहा कि जिस प्रकार दूध जब दही बनता है और फिर घी, तब वह अमूल्य बनता है, उसी तरह “जीवन भी सद्गुरु के सान्निध्य में आत्मिक घी बनकर परम मूल्यवान बनता है।”


पूज्य शाश्वतसागरजी म.सा. ने अपने ओजस्वी प्रवचन में “लोभ और परिग्रह” की प्रवृत्तियों की विवेचना करते हुए कहा कि “लोभ की कोई सीमा नहीं होती, लेकिन भोग की निश्चित मर्यादा होती है।” उन्होंने उदाहरण देकर स्पष्ट किया कि संपत्ति की अधिकता आत्मा को गिरावट की ओर ले जाती है और अंततः दुख का कारण बनती है।
उन्होंने ममन सेठ और पुनिया श्रावक जैसे ऐतिहासिक उदाहरण प्रस्तुत कर बताया कि “लोभ का त्याग कर जीवन को धर्म और आत्मकल्याण के पथ पर लाया जा सकता है।” उन्होंने परिग्रह के तीन मुख्य दुख – प्राप्त करने की चिंता, सुरक्षा की चिंता और भोग की लालसा – को स्पष्ट करते हुए श्रावकों को आत्मचिंतन का संदेश दिया।
उन्होंने भगवान महावीर के वचनों का संदर्भ देते हुए कहा, “शासन चतुर्विध संघ से चलता है, लक्ष्मी से नहीं। धर्म के मार्ग पर त्यागी चलते हैं, भोगी नहीं।”
इस अवसर पर संघ के वरिष्ठ सदस्य चम्पालाल बोथरा ने बताया कि आज पूज्य साध्वी श्री प्रमोदिता श्रीजी म.सा. एवं श्री शाश्वतनिधि श्रीजी म.सा. के अवतरण दिवस पर सभी ने हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित कीं।
आज की धर्मसभा ने उपस्थित जनसमूह को गहराई से आत्ममंथन के लिए प्रेरित किया और सभी ने संकल्प लिया कि वे सद्गुरु के वचनों का अनुकरण कर आत्मिक प्रगति की ओर अग्रसर होंगे।

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