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खरतरगच्छ परंपरा: संयम, त्याग और सद्गुरु उपासना से आत्मोद्धार का मार्ग-मुनि शास्वतसागरजी

सूरत। कुशल दर्शन दादावाड़ी, पर्वत पाटिया में बाड़मेर जैन श्री संघ के तत्वावधान में चल रहे सर्वमंगलमय वर्षावास 2025 में पूज्य श्री समर्पित सागर जी म.सा. ने अपने प्रवचनों में खरतरगच्छ परंपरा की महत्ता और सद्गुरु की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर का पंथ आचरण और संयम की रीढ़ पर आधारित है, किन्तु कालांतर में साध्वाचार में शिथिलता आने पर चैत्यवासी यति परंपरा का जन्म हुआ। ऐसे समय में वर्धमानसूरीजी की अगुआई में बुद्धिसागरसूरीजी और जिनेश्वरसूरीजी ने “खरतरगच्छ” परंपरा की स्थापना की, जो आज भी तप, त्याग और तत्वज्ञान का प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि समर्थता से कार्य संभव है, पर सद्गुरु से जुड़ने पर असंभव भी संभव हो जाता है। जब व्यक्ति साधना के मार्ग पर चलता है तो पूर्वकर्म बाधक बनते हैं, लेकिन सद्गुरु की कृपा से आत्मा समर्पण और साधना की ओर अग्रसर होती है। उन्होंने ‘HEART’ सिद्धांत द्वारा बताया कि सद्गुरु हर क्षण सहायता करते हैं, दोषों से जागरूक कर आत्मज्ञान की ओर ले जाते हैं।
पूज्य श्री शाश्वत सागर जी म.सा. ने अपने प्रवचनों में “त्याग ही सच्चा वैभव है” विषय पर कहा कि जब कोई जीव संपत्ति की आसक्ति त्यागकर धर्म में योगदान देता है, तभी उसकी आत्मा उन्नति की ओर बढ़ती है। उन्होंने पेठड़ शाह और वास्तुपाल-तेजपाल जैसे श्रद्धालुओं के उदाहरण देकर बताया कि समर्पित भाव से किए गए धर्मकार्य को दिव्य शक्तियों का भी सहयोग मिलता है।


उन्होंने लक्ष्मी के विभिन्न प्रकार
पाप लक्ष्मी (हिंसा, टैक्स चोरी आदि से अर्जित धन) दुखदाई है,श्रापित लक्ष्मी (बैंक लॉकरों में निष्क्रिय पड़ी) व्यर्थ है,भाग्य लक्ष्मी बिना परिश्रम के आती है,पुण्य लक्ष्मी धर्मानुसार अर्जित धन है, जो आत्मोन्नति का साधन बनती है।पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम में सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं ने प्रवचन श्रवण कर जिनवाणी को जीवन में उतारने का संकल्प लिया। बाड़मेर जैन श्री संघ के वरिष्ठ सदस्य चम्पालाल बोथरा ने बताया कि वर्षावास काल में प्रतिदिन प्रवचन, ध्यान और धर्म आराधना की प्रेरणा मिल रही है।

(संकलन)

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