जिनवाणी के प्रति पूर्ण विश्वास आवश्यक है-आचार्य सम्राट शिवमुनि
मेघकुमार प्रसंग के माध्यम से श्रद्धा और संयम का संदेश

सूरत (आत्म भवन, बलेश्वर)। आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. ने आज आत्म भवन में आयोजित धर्मसभा में आध्यात्मिक भावों से ओतप्रोत प्रवचन देते हुए मेघकुमार के जीवन प्रसंग का उल्लेख किया और श्रद्धा, संयम तथा आत्मबोध के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला।
उन्होंने बताया कि मेघकुमार एक राजकुमार थे जिन्होंने संयम जीवन को स्वीकार कर मुनि दीक्षा ली थी। एक रात किसी साधु की अनजाने में ठोकर लगने पर उनके मन में पूर्व जीवन की स्मृति और अहम का विचार आया कि एक समय सब उन्हें आदर से बुलाते थे, और अब उन्हें किसी ने अंधेरे में ठोकर मार दी। उन्होंने जब भगवान महावीर से इस संदर्भ में जिज्ञासा की, तो भगवान ने अपने केवलज्ञान से पूर्वजन्म का विवरण बताया कि वे पूर्व जन्म में एक हाथी थे, जिसके पांव तले एक खरगोश ने जंगल की आग से बचने के लिए शरण ली थी। जब हाथी ने पाँव ऊपर उठाया, उस क्षण खरगोश की जान बची और उसी पुण्य के प्रभाव से उन्हें इस जन्म में राजकुमार का जीवन मिला।
आचार्य श्री ने इस प्रसंग के माध्यम से बताया कि संयम मार्ग पर अग्रसर साधु के जीवन में यदि मन डांवाडोल हो तो उसे प्रेम से समझाना चाहिए, न कि उपेक्षा करनी चाहिए। उन्होंने बलपूर्वक कहा कि साधु को संयम की दृढ़ परिपालना करनी चाहिए और दीक्षा के समय की श्रद्धा और वैराग्य भाव को निरंतर बढ़ाते रहना चाहिए। जब श्रद्धा परिपक्व होती है, तब शंका, संदेह और विचलन का कोई स्थान नहीं रहता।
उन्होंने आगे कहा कि मन और बुद्धि दोनों चंचल होते हैं। मन स्वभावतः नीचे की ओर खींचता है, इसलिए उसमें पवित्र श्रद्धा और सत्य की प्यास होना आवश्यक है। उन्होंने चेताया कि जहां संदेह होता है, वहां मन डोलता है और श्रद्धा की अनुपस्थिति में आत्मोन्नति संभव नहीं होती। किसी भी कार्य के प्रति अडिग श्रद्धा ही सफलता का आधार है, और जिनवाणी के प्रति पूर्ण विश्वास आवश्यक है।
प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने श्री दशवैकालिक सूत्र की वांचना करते हुए बताया कि जो आत्मा को गौण समझता है और शरीर को प्रधान मानता है, वही प्रमादी होता है। आत्मा की जागरूकता ही मोक्षमार्ग की प्रथम सीढ़ी है।
युवा साधक श्री शुभम मुनि जी म.सा. ने “सिद्ध शिला है मेरा धाम, शुद्ध-बुद्ध है आत्मा राम” भजन की भक्ति रस में डूबी प्रस्तुति दी, जिससे श्रोताओं में आध्यात्मिक भावों की तरंगें जागृत हुईं।
विशेष श्रमण संघीय द्वितीय पट्टधर आचार्य सम्राट श्री आनन्दऋषि जी म.सा. की 126वीं जन्म जयंती 25 जुलाई 2025 को पूरे देश में सामूहिक तेला तप की आराधना से मनाई जाएगी। श्रद्धालुओं से इस तप आराधना में भाग लेने का आग्रह किया गया।
मुंबई से ऑनलाइन जुड़े श्रावक श्री नमन हितेश मेहता ने 15 उपवास का संकल्प लिया, वहीं सूरत सहित अन्य स्थानों के कई श्रद्धालुओं ने भी अपनी क्षमता अनुसार विभिन्न उपवास, त्याग और प्रत्याख्यान की आराधना ली।