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गुरु ऊपर से कठोर व भीतर से नरम होते हैं – जैनाचार्य श्री शिवमुनि

आत्म भवन, बलेश्वर, सूरत।आत्मज्ञानी सद्‌गुरुदेव आचार्य सम्म्राट पूज्य डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. आदि ठाणा 10 का चातुर्मासिक प्रवास आत्म भवन अवध संगरीला बलेश्वर में है। आज गुरु पूर्णिमा के दिन नवकार महामंत्र के जाप के साथ चातुर्मास की स्थापना हुई।

आचार्य भगवन ने चातुर्मास स्थापना दिवस पर अपने उद्बोधन में फरमाया कि आज चातुर्मास का प्रारंभ दिवस एवं गुरु पूर्णिमा का दिन है जो सबके लिए मंगलकारी हो। मंगल दो प्रकार के हैं एक लौकिक मंगल और दूसरा परमार्थ मंगल। मंगल वह है जो व्यक्ति को अध्यात्म व परमात्मा से जोड़ता है। यदि व्यक्ति ममकार और अहंकार को मिटा देता है तो जीवन में मंगल ही होता है। समग्र भारतवर्ष में हजारों स्थानों पर अनेक चातुर्मास हो रहे हैं, श्रमण संघ के 365 चातुर्मास हो रहे हैं। सभी स्थानों पर आध्यात्मिकता का वातावरण फैले व जन-जन में जैन धर्म और श्रमण संघ की प्रभावना हो।

उन्होंने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर यह भी फरमाया कि मां पहला गुरु होती है। जो बच्चे को सब कुछ सिखाती है, उदण्डता करने पर डांटती है, यदि केवल दुलार-प्यार ही करे, डांटे नहीं तो बच्चा उदण्ड हो जाता है। उन्होंने आगे गुरु शिष्य के अनुशासनात्मक

सम्बधों की चर्चा करते हुए फरमाया कि गुरु शिष्य का परस्पर एक भावनात्मक सम्बध जुड़ा होता है। शिष्य के द्वारा गलती होने पर गुरु शिष्य को प्रेम से समझाता है, प्रेम से नहीं समझने पर कठोर शब्दों का प्रयोग भी करता है लेकिन भीतर में कठोरता नहीं होती है। गुरु ऊपर से कठोर व भीतर से नरम बनकर शिष्य पर अनुशासन करता है क्योंकि गुरु अपने शिष्य का हित चाहता है। शिष्य को चाहिए कि वह सद्‌गुरु के चरणों का उपासक बनकर अपना पक्ष त्यागते हुए निज आत्म अनुभूति की प्राप्ति में निरंतर लगा रहे ऐसा शिष्य गुरु आज्ञा को सर्वोपरि मानकर निश्चित रूप से परमार्थ को प्राप्त करता है। आचार्य श्री जी ने जनमानस को चातुर्मास में तप के रूप में कुछ न कुछ त्याग करने की प्रेरणा प्रदान की।

इससे पूर्व प्रमुखमंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में उपादान की चर्चा करते हुए फरमाया कि उपादान के लिए त्याग और श्रद्धा की जरूरत है यदि उपादान तैयार नहीं है तो कुछ नहीं मिल सकता। उपादान की शुद्धि करते हैं, महावीर का मार्ग कृपा का नहीं निमित और उपादान का है। उपादान व्यक्ति के संकल्प से मिलता है। इससे पूर्व श्री शुभममुनि जी म.सा. ने” आज के युग के ही शिव भगवान है, आत्मा-परमात्मा का ज्ञान है।” सुमधुर भजन की प्रस्तुति देते हुए फरमाया कि गुरु की ऊर्जा सूर्य जैसी विस्तार आकाश जैसा है, आचार्य भगवन

के चरणों में जो आ रहे हैं वे सौभाग्यशाली हैं। आचार्य भगवन् के आभा मण्डल का लाभ हम सभी प्राप्त कर रहे हैं।

श्री शमित मुनि जी म.सा. ने फरमाया कि चांद गुरु है सूरज परमात्मा है। सूरज से ही रोशनी लेकर चांद रोशनी फैलाता है उसी तरह परमात्मा से मिलाने का माध्यम है गुरु। गुरु हमें परमात्मा से मिलाने वाले होते हैं। श्री शाश्वत मुनि जी म.सा. ने फरमाया कि अच्छे माता-माता, जिनशासन व अच्छे गुरु का मिल जाना अति सौभाग्य की बात है। हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि हमें जैन धर्म मिला और हमें आचार्य भगवन जैसे सद्गुरु मिले।

चातुर्मास प्रारंभ के साथ ही आज से तपस्याओं का दौर भी शुरू हो गया। आज श्री शौर्य मुनि जी म.सा. ने पांच दिन के उपवास का प्रत्याख्यान किया व नवदीक्षित श्री शूचित मुनि जी म.सा. ने 2 दिन के उपवास का प्रत्याख्यान किया। सचिन से आए कुलदीप चंगेडिया ने पांच दिन के उपवास का प्रत्याख्यान किया। इसके अलावा अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने सामूहिक रूप से तपस्याओं के प्रख्याख्यान ग्रहण किये।

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