भीतर आत्मा में है सुख : आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनि जी

भीतर आत्मा में है सुख : आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनि जी
पुद्गल का धर्म है परिवर्तनशील : प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा.
बलेश्वर, सूरत। सभा में आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनि जी म.सा. ने प्रवचन न देकर आत्म ध्यान के प्रयोग द्वारा श्रद्धालुओं को लाभान्वित किया। उन्होंने ध्यान के माध्यम से जड़ और जीव का भेद कराते हुए फरमाया कि भीतर आत्मा में अनंत सुख है, उसका अनुभव करें। उपस्थित जनों ने ध्यान साधना द्वारा आत्मानुभूति का अनुभव किया।
सभा में प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने कहा कि शरीर साधक भी है और बाधक भी, यह मन पर निर्भर है। इन्द्रियों पर संयम और मन पर नियंत्रण से ब्रह्मचर्य का पालन संभव है। उन्होंने पुद्गल को परिवर्तनशील बताया और कहा कि शब्द, रस, गंध, स्पर्श सभी अनित्य हैं, जबकि आत्मा का धर्म केवल जानना और देखना है। आत्मा अजर, अमर और अपरिवर्तनशील है।
श्री मुनि जी ने आचार्य भगवन की तपश्चर्या और ध्यान साधना की दिशा को सराहते हुए कहा कि श्रवण संघ को सही मार्गदर्शन देने में उनका योगदान अनुपम है। आत्म ध्यान की साधना ही जिन शासन के प्रचार का मुख्य आधार है।
अंत में युवा मनीषी श्री शुभम मुनि जी म.सा. ने एक भावपूर्ण भजन प्रस्तुत करते हुए जीवन की नश्वरता का बोध कराया और कहा कि आत्मा ही शाश्वत सत्य है, जिसे पहचानकर वैराग्य अपनाना ही जीवन की सफलता है।