आत्मिक सुख प्राप्ति का मार्ग है अध्यात्म की साधना : सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण
-आचार्यश्री ने कषायों को कृश करने की दी पावन प्रेरणा

-शांतिदूत की मंगल सन्निधि में पहुंचे गुजरात के गृहमंत्री श्री हर्ष संघवी
-आपके लगातार दो चतुर्मास प्राप्त करना गुजरात के लिए गौरव की बात : गृहमंत्री, गुजरात
कोबा, गांधीनगर।
वर्ष 2002 में प्रेक्षा विश्व भारती में चातुर्मास करने वाले तेरापंथ धर्मसंघ के दसमाधिशास्ता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के उपरान्त वर्ष 2025 में पुनः उनके ही सुशिष्य तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अहमदाबादवासियों पर विशेष कृपा बरसाते हुए प्रेक्षा विश्व भारती में चतुर्मास करने के लिए विराजमान हो चुके हैं। अहमदाबादवासियों का सौभाग्य है कि इस चतुर्मास के दौरान आचार्यश्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के शुभारम्भ का अवसर प्राप्त हुआ है तो वहीं प्रेक्षा विश्व भारती से ही प्रेक्षाध्यान का 50वां वर्ष ‘प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष’ के रूप में मनाने का सुअवसर प्राप्त हो रहा है। इस अवसर का लाभ उठाने के लिए अहमदाबादवासी दिन-रात अपने आराध्य के आसपास ही रहने का प्रयास कर रहे हैं। सूर्योदय से पूर्व से ही गुरु सन्निधि में धार्मिक कार्यों में श्रद्धालु जुट रहे हैं तो वे देर रात आचार्यश्री को निहारने अथवा निकट सेवा व उपासना के लिए उपस्थित नजर आ रहे हैं। प्रेक्षा विश्व भारती परिसर पूरी तरह जनाकीर्ण बना हुआ है। देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालुओं की उपस्थिति से मानों कोबा लघु भारत बना हुआ है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में प्रदेश व केन्द्र सरकार के अनेक मंत्रियों व अन्य राजनैतिक लोगों के पहुंचने का क्रम भी जारी है। मंगल को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में गुजरात के गृह राज्यमंत्री श्री हर्ष संघवी भी पहुंचे। आचार्यश्री के दर्शन, मंगल आशीष, पावन प्रवचन से लाभान्वित होने के उपरान्त उन्होंने आचार्यश्री के समक्ष अपने हृदयोद्गार भी व्यक्त किए।
मंगलवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ धर्म लाभ लेने को उत्सुक श्रद्धालुओं को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अध्यात्म की साधना आत्मिक सुख प्राप्ति का मार्ग है और अध्यात्म की साधना में कषाय विजय एक बहुत ही केन्द्रीय तत्त्व होता है। कषाय के माध्यम से ही कर्मों का मल आता है। गुस्सा, मान, माया और लोभ कषाय है। अध्यात्म की साधना करने वाला इन कषायों को छोड़े। ये कषाय मोहनीय कर्म परिवार के सदस्य हैं और अनंतकाल से प्राणी के साथ जुड़े हुए रहते हैं। जब तक साधक को नवें गुणस्थान तक चिपके रहते हैं। जब तक कषाय रहता है, तब तक मुक्ति की निकटता नहीं होती है। कषायों का क्षय हो जाए तो बहुत जल्दी ही मुक्ति की प्राप्ति भी हो जाती है।
कषायों से मुक्ति को ही मुक्ति कहा गया है। दिगम्बर और श्वेताम्बर बनने से, तात्त्विक आदि बनने से मुक्ति नहीं मिलती, बल्कि चारों कषायों के क्षीण होने से मुक्ति की प्राप्ति होती है। कषाय मुक्ति के बिना केवल ज्ञान की भी प्राप्ति नहीं होती। इसलिए साधक, मुनि इन चार कषायों से मुक्त होना चाहिए।
सामान्य जीवन में भी दखें तो गुस्सा कहीं काम का नहीं होता। गुस्सा प्रीति का नाश करने वाला होता है। परिवार हो, समाज हो, राष्ट्र हो, कहीं भी आवेश के रूप में गुस्से से बचने का प्रयास करना चाहिए। व्यवहार शुद्धि के लिए भी आदमी का गुस्से पर नियंत्रण होना आवश्यक होता है। संतों के लिए कहा गया है कि जो शांत होता है, वह संत होता है। अहंकार, माया, लाभ, लोभ, ठगी आदि से भी बचने का प्रयास होना चाहिए। आदमी को अपने चरित्र को अच्छा बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपनी आत्मा की ओर ही रखने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए साधक को क्रोध, मान, माया और लोभ को कम करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित गुजरात राज्य के गृहमंत्री श्री हर्ष संघवी ने मंगल आशीष प्राप्त करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी के लगातार दो चातुर्मास की धरा को प्राप्त हुए हैं, यह पूरे गुजरात के गौरव का समय है। ये दो साल हम सभी जैनियों के लिए महत्त्वपूर्ण रही है। यह हमारा सौभाग्य है कि आपके सूरत चतुर्मास की तैयारियों से लेकर गांधीनगर के इस चातुर्मास तक आपके प्रत्येक आयोजन से जुड़ने का सुअवसर मिला है,इसलिए मैं स्वयं को बहुत सौभाग्यशाली समझ रहा हूं। मैं यहां आया तो आपका एक वाक्य पढ़ा कि भलाई का कार्य करो,भगवान की भक्ति स्वतः प्राप्त हो जाएगी। आपके चातुर्मास से कितने-कितने लोगों को लाभान्वित होने का सुअवसर मिल रहा है। मैं पुनः आपके श्रीचरणों की वंदना करता हूं और सम्पूर्ण गुजरातवासियों की ओर से ऐसा सौभाग्य प्रदान करने के लिए आभार प्रकट करता हूं। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।