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तेरापंथ मेरा पंथ प्रशिक्षण कार्यशाला का सूरत में हुआ शानदार आयोजन

उपासक प्राध्यापकद्वय श्री डालिमचंद जी नौलखा एवं श्री निर्मल जी नौलखा ने दिया प्रशिक्षण

सूरत।महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या शासन श्री साध्वी श्री मधुबाला जी के सान्निध्य में जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा के निर्देशन में राष्ट्रीय उपासक श्रेणी एवं श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा सूरत के तत्वावधान में तेरापंथ – मेरापंथ प्रशिक्षण कार्यशाला का शानदार आयोजन तेरापंथ भवन सिटी लाइट में किया गया, जिसमें पश्चिमांचल के गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश एवं उड़ीसा से समागत लगभग 60 भाई बहनों ने भाग लिया।
उपासक श्रेणी के राष्ट्रीय प्राध्यापक डालिमचंद नौलखा एवं उपासक प्राध्यापक निर्मल नौलखा ने द्वि दिवसीय कार्यशाला में संभागी संभागियों को महत्वपूर्ण प्रशिक्षण दिया।
इस अवसर पर आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री मधुबाला जी ने अपने प्रेरक उद्बोधन में बताया कि आचार्य श्री भिक्षु ने तेरापंथ जैन धर्म संघ की स्थापना की। उन्होंने जो दर्शन दिया वही भगवान महावीर का दर्शन है वही तेरापंथ का दर्शन है। उन्होंने तेरापंथ के माध्यम से भगवान महावीर के सिद्धांतों को जन-जन तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया। तेरापंथ दर्शन अहिंसा एवं संयम का दर्शन है और उसमें वर्तमान की सभी समस्याओं का समाधान निहित है।
साध्वी श्री मंजुलयशाजी ने कहा- तेरापंथ दर्शन प्रवक्ता बनने का अवसर मिलना सचमुच में बहुत बड़ा सौभाग्य है। सूरत की भूमि धार्मिक भूमि है। यहां बहुत बड़ी संभावना है। संभागियों का जैन दर्शन का ज्ञान पुष्ट होगा तो वे उसका अच्छा लाभ दूसरे क्षेत्रों में पहुंचकर वहां के लोगों तक पहुंचा पाएंगे।


उपासक प्राध्यापक डालिमचंद नौलखा‍ ने कहा – तेरापंथ दर्शन सम्यक्त्व को पुष्ट करने का दर्शन है। यह प्रशिक्षण कार्यशाला सम्यक्त्व को पुष्ट करने की कार्यशाला है। तेरापंथ का दर्शन भगवान महावीर का दर्शन है। इसे समझने वाला अपनी आत्मा को कषाय मुक्त बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकता है। वह अपनी आत्मा का भी उद्धार कर सकता है एवं दूसरों को भी आत्म शुद्धि के लिए प्रेरित कर सकता है। इस प्रशिक्षण कार्यशाला में भाग लेनेवाले भाई बहनों को आचार्य श्री भिक्षु के अहिंसा, दान-दया, साध्य और साधन के विविध पहलू, मूर्ति पूजा, भाव पूजा, संघ संगठन आदि कई विषयों के संबंध में गहन प्रशिक्षण प्राप्त होगा।
उपासक प्राध्यापक निर्मल नौलखा ने कहा – आचार्य भिक्षु एक महान् जैनाचार्य थे उन्होंने भगवान महावीर के दर्शन को न केवल पढ़ा बल्कि गहराई से समझा और अपने जीवन में उसे जिया। उनके सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक है। आचार्य भिक्षु की जन्म त्रिशताब्दी सामने है। इस अवसर पर जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा ने तेरापंथ दर्शन को व्यापक बनाने हेतु तेरापंथ – मेरापंथ प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया है और उसका दायित्व उपासक श्रेणी को दिया है। धर्म एक शाश्वत तत्व है। हमारे भीतर धर्म के संबंध में कोई भ्रांति नहीं रहनी चाहिए। तत्व की बहुत सी बातें ऐसी होती है जो सहजता से समझ में नहीं आती है। जब तक भगवान की वाणी को ठीक से नहीं समझेंगे तब तक सम्यक्त्व नहीं आएगा। सम्यक्त्व नहीं आएगा तो चारित्र भी नहीं आएगा और चारित्र जब तक नहीं आएगा तब तक मुक्ति या मोक्ष पद की प्राप्ति भी नहीं होगी। इस कार्यशाला में संभागी संभागियों को जैन दर्शन एवं तेरापंथ दर्शन को गहराई से समझना है और उसे जन-जन तक ले जाना है।
जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा की ओर से उपाध्यक्ष फूलचंद छत्रावत ने कहा – आचार्य श्री भिक्षु ने भगवान महावीर द्वारा निर्देशित अहिंसा दर्शन को जन-जन तक पहुंचाने के लिए भागीरथ पुरुषार्थ किया। उनके मार्ग में अनेक कष्ट आए लेकिन वे उन कष्टों से विचलित नहीं हुए। आज तेरापंथ धर्म संघ सभी जैन संघों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। यह आचार्य श्री भिक्षु की देन है। तेरापंथी सभा सूरत के अध्यक्ष मुकेश बैद ने स्वागत वक्तव्य में तेरापंथ मेरापंथ प्रशिक्षण कार्यशाला के आयोजन का अवसर मिलना इसे सूरत सभा का परम सौभाग्य बताया। स्थानीय उपासक प्रभारी सुरेश बाफना ने इस अवसर पर अपने विचार प्रस्तुत किए एवं पूज्य गुरुदेव, साध्वी श्री जी एवं उपासक प्राध्यापक द्वय के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन किया।
गहन प्रशिक्षण के पश्चात परीक्षण का क्रम भी चला जिसमें उपस्थित सभी संभागियों ने तेरापंथ दर्शन के संदर्भ में विविध विषयों पर अपने विचारों की प्रस्तुति दी। आभार ज्ञापन सुरेश बाफना ने किया। राहुल खोखावत एवं अन्य कार्यकर्ताओं ने सराहनीय श्रम किया।

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