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साधना का महत्त्वपूर्ण अंग है ध्यान : अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण

वीरपुर में पधारे भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण*

-सात कि.मी. का विहार कर वीरपुर की धरा को किया पावन

-साध्वीप्रमुखाजी ने वीरपुरवासियों को किया उद्बोधित

07.06.2025, शनिवार, वीरपुर, खेड़ा।सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रेरणा देने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अब धीरे-धीरे गुजरात की राजधानी अहमदाबाद की ओर बढ़ रहे हैं। शनिवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सालैया से अपनी धवल सेना के साथ मंगल प्रस्थान किया। लगभग सात किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री जैसे ही वीरपुर में पधारे तो वहां की श्रद्धालु जनता ने भावभीना स्वागत किया। स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री वीरपुर में स्थित देसाई सी.एम. हाईस्कूल में पधारे।

स्कूल परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दो शब्द बताए गए हैं-स्वाध्याय और सध्यान। स्वाध्याय और ध्यान की साधना के अंग हैं। स्वाध्याय से ज्ञान वृद्धि हो सकती है और ध्यान से एकग्रता और स्थिरता की स्थिति का विकास हो सकता है। ज्ञान और ध्यान दोनों ही साधना के अंग हैं। ज्ञान के लिए भी पुरुषार्थ की आवश्यकता है और ध्यान के लिए भी विशेष अध्यवसाय होना अपेक्षित होता है। ध्यान काफी प्रचलित शब्द हो गया है। अनेक ध्यान की पद्धतियां दुनिया में चल रही हैं। आजकल तो विश्व में ध्यान दिवस भी शुरु हुआ है। ‘विश्व ध्यान दिवस’ के रूप में वैश्विक स्तर पर इसका मान बढ़ा है, ध्यान की व्यापकता बढ़ी है। तपस्या के बारह भेदों मंे ग्यारहवां भेद ध्यान है। ध्यान वैसे अशुभ भी हो सकता है और शुभ ध्यान भी हो सकता है। शुभ ध्यान धर्म की साधना का एक अंग होता है।

तेरापंथ धर्मसंघ में प्रेक्षाध्यान चलता है। परम पूजनीय आचार्यश्री तुलसी के समय इसका नामकरण हुआ था। अभी वर्तमान में इसका 50वां वर्ष चल रहा है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी इस पद्धति से मुनि अवस्था से ही जुड़ गए थे। वे स्वयं ध्यान शिविरों का संचालन भी करते थे। प्रेक्षाध्यान पद्धति हमारे धर्मसंघ के द्वारा स्थापित है। राग-द्वेष से मुक्त होकर एकाग्र हो जाना ध्यान हो जाता है। ध्यान वैसे बहुत सरल भी हो सकता है कि एक बिन्दु पर आदमी का चित्त केन्द्रित हो जाए। आपकी कोई कार्य करता है तो आदमी अपने किसी बात को कहने में भी ध्यान का प्रयोग करते हैं। ध्यान से चलना, ध्यान से उठा-बैठना, ध्यान से सुनना, ध्यान से चलना आदि-आदि रूपों में जीवन से किस प्रकार ध्यान का उपयोग हो सकता है।

ध्यान के संदर्भ में अनेक बातें हो सकती हैं। सामान्य रूप से हमें शरीर की स्थिरता का अभ्यास करने का प्रयास करना चाहिए। वाणी से अवाक् रहें और मन से सोचना, स्मृति करना आदि- भी ध्यान ही कहा जाता है। यहां तक की चलने में ध्यान से चलने की बात कही जाती है। मन, वचन और काय की प्रवृत्तियों पर रोक लगा देना आदि भी अपने आप में ध्यान हो जाता है। ध्यान पवित्र हो तो बहुत अच्छी बात हो सकती है। एकाग्रता अच्छी चीज में होनी चाहिए। एकाग्रता शुभ चीजों में हो तो बहुत अच्छी बात हो सकती है। गलत कार्यों में भी लोग एकाग्र होते हैं, लेकिन वह ध्यान अशुभ होता है। आदमी को अशुभ ध्यान से बचकर शुभ ध्यान की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। आदमी ध्यान का प्रयोग करे तो यह भी साधना का अच्छा उपक्रम बन सकता है।

आचार्यश्री ने समुपस्थित लोगों को कुछ देर के लिए ध्यान का प्रयोग भी कराया। उसके उपरान्त आचार्यश्री ने कहा कि प्रेक्षाध्यान से देश-विदेश में कितने-कितने लोग जुड़े हैं। अनुशासन के साथ नित नूतन विकास होता रहे। आदमी को अपने जीवन में धर्म की दृष्टि से अपनी जड़ों को मजबूत करने का प्रयास करना चाहिए। आज हमारा वीरपुर में आना हुआ है। भगवान महावीर का भी एक नाम वीर है। हम भगवान महावीर के पथ के पथिक है। आचार्यश्री ने वीरपुरवासियों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की प्रेरणा प्रदान की।

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने वीरपुर की उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री के स्वागत में स्थानीय उपसभा के मंत्री श्री श्री खेमराज बोहरा, श्रीमती मनाली बोल्या, सुश्री कोमल बोहरा, खेड़ा जिला के प्रमुख व पूर्व उपाध्यक्ष श्री मुकेश शुक्ल व देसाई सी.एम. हाईस्कूल के प्रिंसिपल श्री ऋषि भट्ट ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। बालक पंथ बोल्या ने अपनी बालसुलभ अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल ने गीत का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपने आराध्य के समक्ष अपनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी।

 

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