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गुरुओं की आज्ञा में वर्तन करने वाला प्राप्त कर सकता है मोक्ष : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

करीब 7 कि.मी. का विहार कर सेवला गांव में पधारे शांतिदू

-ग्रामवासियों ने किया आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन

10.06.2025, मंगलवार, सवेला, अरवल्ली।जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में अरवल्ली जिले को अपनी आध्यात्मिक ज्ञानमयी किरणों से आलोकित कर रहे हैं। अरवल्लीवासी ऐसे सौभाग्य को प्राप्त कर इतरा रहे हैं। सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले एक-एक तेरापंथी श्रद्धालुओं के साथ जैन एवं जैनेतर लोगों को मानवता के मसीहा के दर्शन व मंगलवाणी श्रवण का जो लाभ प्राप्त हो रहा है, उनके जीवन का अविस्मरणीय पल बन रहा है।

मंगलवार को प्रातःकाल की मंगल बेला युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने साठंबा से मंगल प्रस्थान किया। साठंबा के लोगों ने अपने आराध्य के श्रीचरणों में अपनी कृतज्ञता अर्पित की तो आचार्यश्री ने उनपर आशीषवृष्टि की। मानूसन की सक्रियता के साथ ही धरती ने मानों हरियाली चादर ओढ़ ली हो। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों की हरियाली तो और भी मोहक नजर आ रही है। ग्रामीण जनता को स्थान-स्थान पर आशीष प्रदान करते आचार्यश्री लगभग सात किलोमीटर का विहार सवेला गांव में स्थित श्री सवेला ग्रुप प्राथमिकशाला में पधारे।

महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्राथमिकशाला में आयोजित प्रातःकालीन मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आध्यात्मिक साहित्य में मोक्ष का उल्लेखन हुआ है। मोक्ष एक दार्शनिक विषय भी है। जीव कैसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष की स्थिति, परम आनंद की स्थिति को प्राप्त कर सकती है? मोक्ष प्राप्त कर लेना तो सर्वोपरि उपलब्धि हो जाती है। प्रश्न हो जाता है कि मोक्ष की प्राप्ति कैसे हो? एक जगह समाधान प्रदान किया गया कि जो गुरुओं के निर्देश में वर्तन करता हो, विनय, अनुशासनबद्धता से युक्त हो तो उसे मोक्ष की प्राप्ति भी हो सकती है। जिस प्रकार विद्यालय के विद्यार्थी गुरुओं के निर्देशन में अनुशासित ढंग से रहते तो व्यवस्था कितनी अच्छी चलती है। अनुशासनहिनता करने वाले को दण्डित और कभी स्कूल से मुक्त भी किया जा सकता है।

कहा गया कि जहां अनुशासनशीलता होती है, वहां की व्यवस्था अच्छी चल सकती है। अविनीत, उद्दण्ड आदमी को कभी संगठन से निकाला भी जा सकता है। जो गुरुओं के निर्देश में वर्तन करने वाला, गुरु की आज्ञा में रहने वाला होता है, वह कभी मोक्ष को प्राप्त भी कर सकता है। जिस व्यक्ति ने धर्म की बातों को अच्छे ढंग से सुना है, उसे सुनते-सुनते अच्छा ज्ञान व शिक्षा की प्राप्ति हो सकती है। वैसी बातें जीवन के लिए उपयोगी हो सकती है। अच्छे ढंग से श्रवण हो और फिर अच्छे ढंग से उस पर मनन हो जाए तो वह ज्ञान कितना पुष्ट हो सकता है। साधुओं को गुरु की आज्ञा के प्रति सजगता रखने का प्रयास करना चाहिए। कभी प्रवचन में आना हो तो समय का विशेष ध्यान रखने का प्रयास होना चाहिए। किसी भी उपक्रम में समय से पहुंचना भी अनुशासन की बात होती है। गृहस्थ जीवन में भी समयबद्धता का ध्यान रखने का प्रयास करना चाहिए। समय से पहले पहुंचना तो और अच्छी बात होती है। देर से नहीं, समयबद्धता का ध्यान रखने का प्रयास किया जा सकता है।

आचार्यश्री ने चतुर्दशी तिथि होने के कारण हाजरी के क्रम को संपादित करते हुए तेरापंथ के तेरह नियमों का वर्णन कर उसके प्रति जागरूक रहने की प्रेरणा प्रदान की। साथ ही आचार्यश्री ने संगठन की मर्यादाओं के संदर्भ में भी प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री की अनुज्ञा से मुनिश्री संयमकुमारजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया। तदुपरान्त उपस्थित सभी साधु-साध्वियों ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र उच्चरित किया।

 

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