बिना टांकने की मार,नहीं मिलता आकार–साध्वी श्री रत्नेशगुणाश्री म.सा.
सुख का कारण धर्म का प्रभाव और दुःख का कारण धर्म का अभाव

बाड़मेर। शांतिनगर रैन बसेरा के पीछे स्थित विघ्नहरा जीरावल्ला श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर में विराजित साध्वी श्री भावगुणाश्रीजी मसा की सुशिष्या सरल स्वभावी प्रवचनकार साध्वी श्री रत्नेशगुणाश्रीजी मसा ने जैन धर्मावलंबियों को सम्बोधित करते हुवे कहा कि दो पत्थर मंदिर के बाहर एक पत्थर से मंदिर में प्रतिमा का निर्माण दूसरा पत्थर मंदिर के बाहर रह जाता है। एक पत्थर की प्रतिमा के आगे सर झुकाना दूसरे पत्थर पर नारियल को फोड़ना। दोनों पत्थर आपस में बात करते है। सबसे पहले मूर्ति का चांस तुझे मिला लेकिन तूने छेनी के हथौड़े की मार को सहन नहीं किया। अगर तू पहले छैनी की मार सहता तो तेरी मूर्ति बन जाती तू पूजनीय बन जाता। लेकिन सहन नहीं की। सहन करें वही शहंशाह बनता है। जिसने सहन किया शालीभद्र, गजसुकुमांल वे पूजनीय बन गये। शांति और सुख चाहिए तो सहन करना होगा। सभी को साधन सामग्री, सुविधाए, संबंध खूब है सुविधाये बढ़ रही है, सामग्री बढ़ रही है तो लगता है सुख मिलता है लेकिन यह मान्यता गलत है परिस्थिति कैसी भी हो भाव बदल जाता है।