अनासक्ति की चेतना का विकास करे मानव : मानवता के मसीहा महाश्रमण
-आचार्यश्री ने राग-द्वेष व आसक्ति से बचने को किया अभिप्रेरित

–9 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे हरसोल*
-श्री सी.आर. भगत हाईस्कूल में हुआ पावन प्रवास
15.06.2025, रविवार, हरसोल, साबरकांठा।धीरे-धीरे गुजरात की राजधानी की ओर बढ़ते जा रहे ज्योतिचरण की पदरज से गुजरात की धरा निरंतर पावन बन रही है। जन-जन को आशीष प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी रविवार को हरसोल की ओर गतिमान हुए। मार्ग में अनेक स्थानों पर ग्रामीण जनता को आचार्यश्री का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। रविवार होने के कारण आज अहमदाबाद आदि आसपास के क्षेत्रों के श्रद्धालुओं की उपस्थिति अधिक थी तो विहार में भी लोगों की अच्छी खासी उपस्थिति थी। लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री हरसोल में स्थित श्री सी.आर. भगत हाईस्कूल में पधारे। यहां उपस्थित श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आसक्ति बन्धन का मार्ग और अनासक्ति बन्धनमुक्ति का मार्ग है। आदमी जितना शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श में जितना आसक्त होता है, वह बन्धन से बद्ध हो जाता है और जितना मुक्त रहता है, उस सीमा में बन्धन से मुक्त भी रह सकता है। इसलिए एक उदाहरण दिया गया कि एक दीवाल पर एक गीले मिट्टी का गोला और एक सूखे मिट्टी का गोला फेंका गया। गीले मिट्टी का गोला दीवाल से चिपक गया और सूखा गोला झड़ गया। यह एक आसक्ति और अनासक्ति का उदाहरण है।
आदमी जीवन जीता है। उसे जीवन चलाने के लिए भोजन भी करता होता है, पानी भी पीना होता है, वस्त्र, मकान आदि अनेक अपेक्षित वस्तुएं जीवन जीने के लिए चाहिए। आदमी इन वस्तुओं का उपयोग भी करता है। एक आसक्ति का मार्ग है और दूसरा अनासक्ति का मार्ग है। भोजन करना है, कपड़े पहनने हैं, लेकिन यहां देखना यह है कि आदमी का इन वस्तुओं के साथ मोह हो गया, राग भाव आ गया अथवा किसी के प्रति द्वेष का भाव आ गया तो फिर बन्धन की बात हो जाती है। आदमी पदार्थों का उपयोग करते हुए भी अनासक्त रहता है, उसके प्रति मोह नहीं रखता है तो वहां अनासक्ति की बात हो जाती है। इसलिए आदमी को उपभोग करने वाली वस्तुओं का उपभोग करते हुए उनके प्रति मोह से बचने का प्रयास करना चाहिए। मोह की प्रवृत्ति ही बन्धन कराने वाली होती है।
जहां मोह होता है, वहां दुःख भी होता है। पूज्यप्रवर ने अहमदाबाद के प्लेन दुर्घटना के संदर्भ में कहा कि अहमदाबाद में प्लेन दुर्घटना हुआ, कितने लोग कालधर्म को प्राप्त हो गए। हालांकि उसके प्रति सभी दुःख व्यक्त करते हैं, लेकिन जिनके परिवार के लोग गये हैं, उनका दुःख तो विशेष ही होगा। कहीं से राग का संबंध है तो कहीं से द्वेष का संबंध भी हो सकता है। यह राग-द्वेष का अनुबंध कितने-कितने जन्मों तक चलता रहता है। जिसके साथ राग है तो कितने जन्मों तक चलता रह सकता है और जिसके साथ द्वेष का भाव हो गया तो वह भी कितने जन्मों तक चल सकता है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में अनासक्ति की चेतना का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अत्यधिक राग से बचने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी को अपनी आवश्यकता की पूर्ति तो करनी हो सकती है, किन्तु अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने जीवन में संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। संयम रखना धर्म और व्यवहार दोनों दृष्टि से हितकर हो सकता है। साधु के लिए तो उपकरणों का भी संयम रखने की प्रेरणा दी जाती है। आदमी को अपने जीवन में इच्छाओं को जहां तक सीमित रखने का प्रयास करना चाहिए। सादगी व संयम से युक्त जीवन हो तो बहुत अच्छी बात हो सकती है। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने श्रावक के तीन मनोरथों का वर्णन करते हुए कहा कि श्रावक कभी तीन मनोरथों को पूर्ण कर ले तो उसका जीवन सफल हो सकता है। इस प्रकार आदमी को अनासक्ति की चेतना का विकास कर अपने जीवन को निर्मल बनाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने आशीष प्रदान करते हुए कहा कि श्री हरसोल सी.आर. भगत हाईस्कूल के विद्यार्थियों के शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी देने का प्रयास किया जाता रहे।
स्कूल की ओर से श्री कल्पेशभाई व श्री विपुलभाई डी. पटेल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी व आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। प्रान्तीज ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी। बालक दक्ष बाबेल ने अपनी बालसुलभ प्रस्तुति दी।