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लोभ को अलोभ से जीतने का हो प्रयास : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुदर्शन करने वाली अनेक चारित्रात्माओं ने दी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति

-शाहीबाग प्रवास के दूसरे दिन आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को दी मंगल प्रेरणा

-साध्वीवर्याजी ने जनता को किया उद्बोधित

28.06.2025, शनिवार, शाहीबाग, अहमदाबाद।अहमदाबाद के शाहीबाग में स्थित तेरापंथ में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी सप्तदिवसीय प्रवास के लिए विराजमान हो चुके हैं। श्रद्धाभावों से भरे अहमदाबादवासी प्रातः सूर्योदय से पूर्व ही उपस्थित हो जा रहे हैं और देर रात तक अपने गुरु की सन्निधि में उपस्थित रहकर आध्यात्मिक लाभ उठा रहे हैं। शाहीबाग प्रवास के दूसरे दिन भी श्रद्धालुओं का तांता-सा लगा रहा।

तेरापंथ भवन में बने सभागार में उपस्थित श्रद्धालुओं को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि हमारे यहां आगम वाङ्मय का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ में बत्तीस आगमों की मान्यता है। ग्यारह अंग, बारह उपांग, चार मूल, चार छेद और एक आवश्यक। इनको हम एक प्रमाण के रूप में स्वीकार करते हैं। इनमें भी ग्यारह अंग वे स्वतः प्रमाण हैं। इनका विशेष महत्त्व होता है। इनमें एक है उत्तरज्झयणाणि। इसमें छत्तीस अध्ययन हैं। इनमें तात्त्विक ज्ञान की बातें भी हैं और आध्यात्मिक साधना का पथदर्शन भी इस आगम से प्राप्त हो सकता है। कुछ घटना, कथानक प्रसंग भी हैं जो वैराग्यवर्धक बन सकते हैं। इसके दसवें अध्ययन में बार-बार समय मात्र प्रमाद न करने की प्रेरणा दी गई है। इसके अध्ययन में बताया गया कि जैसे ही लाभ बढ़ता है, वैसे ही लोभ भी बढ़ जाता है। लाभ से लोभ रूपी अग्नि को ईंधन मिल जाता है। आदमी के भीतर लोभ की वृत्ति होती है जो दसवें गुणस्थान तक बनी रहती है। चार वृत्तियां बताई गईं- क्रोध, मान, माया और लोभ। इनमें सबसे अंतिम में समाप्त होने वाली वृत्ति लोभ है। साधु के जीवन में सबसे अंतिम क्षीण होने वाला लोभ कषाय होता है।

इस एक लोभ के कारण आदमी अनेक अपराधों में जा सकता है। लोभ के कारण आदमी झूठ बोलता है। लोभ के कारण मानव हिंसा में भी जा सकता है। लोभ रूपी महापहाड़ को कमजोर अथवा पतला करने का प्रयास करना चाहिए। इसे कमजोर करने अथवा पतला करने का उपाय शास्त्र में बताया गया कि लोभ को संतोष से जीतने का प्रयास करना चाहिए। अपनी इच्छाओं को सीमित करने का प्रयास करना चाहिए। लोभ का विरोध तत्त्व अलोभ, संतोष है। लोभ को कम करने के लिए अलोभ का अनुचिंतन करने का प्रयास करना चाहिए।

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दुःख का एक बड़ा कारण लोभ है। कामनुवृद्धि के कारण दुःख पैदा होता है। ज्यादा लाभ होने पर भी आदमी को लोभ में नहीं जाना चाहिए। आदमी को अपनी आवश्यकता और अपनी इच्छा पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। वश्यकताएं तो पूरी की जा सकती हैं, किन्तु इच्छाएं असीम होती हैं। आवश्यकताओं का सीमाकरण हो तो और अच्छी बात हो सकती है। इच्छाओं को कम करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को भी काम, धंधा करे, उसमें धर्म रखने का प्रयास करना चाहिए। धर्म स्थान में ही कर्मस्थान में भी धर्म रहना चाहिए। कर्म स्थान पर धर्म रहेगा और मन में संतोष रहेगा तो लोभ की वृत्ति पर अंकुश लग सकता है।

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी अहमदाबादवासियों को उद्बोधित किया। साध्वी सरस्वतीजी ने अपने हर्षित हृदयोद्गार व्यक्त करते हुए अपनी सहयोगी साध्वियों के साथ गीत का संगान किया। साध्वी परमयशाजी ने भी अपने हृदयोद्गार व्यक्त करते हुए सहवर्ती साध्वियों के साथ गीत का संगान किया। साध्वी केवलयशाजी ने गुरुचरणों में अपनी भावनाओं को अर्पित किया। तेरापंथ कन्या मण्डल ने अपनी प्रस्तुति की। अणुव्रत समिति-अहमदाबाद के अध्यक्ष श्री प्रकाशचंद धींग ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्री एमजी शाह ने गीत का संगान किया।

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