तीर्थंकरों की स्तुति और स्तवना मनुष्य को संसार सागर से पार करा सकती है-साध्वी श्री राकेश कुमारीजी
तेरापंथ भवन, उधना में भाविक भक्तों को संबोधित किया।

सूरत।महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वी श्री राकेश कुमारीजी मुंबई का यशस्वी चातुर्मास संपन्न कर सूरत पधारे हैं। उनका आगामी चातुर्मास बारडोली में होगा। उनका वर्तमान में उधना में पदार्पण हुआ है।
उधना स्थित तेरापंथ भवन में रविवाऱीय प्रवचन के अंतर्गत श्रद्धालुओं की धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वी श्री राकेश कुमारीजी ने कहा — जैन आगमों में भक्ति योग का विशद विवेचन मिलता है, जिसमें स्तुति और स्तवना दोनों का महत्व दर्शाया गया है। मोक्ष के मार्ग पर चलने के लिए पहला कदम सम्यक दर्शन है। जब कोई सम्यक दृष्टि प्राप्त करता है तभी भाव विशुद्धि होती है। भाव विशुद्धि के फल स्वरूप आत्म विशुद्धि होती है और संपूर्ण आत्म-विशुद्धि के द्वारा ही मोक्ष प्राप्त करना संभव होता है।
साध्वी श्री ने आगे कहा कि जैन परम्परा में चौबीस तीर्थंकरों की महिमा का वर्णन है। इन चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति से महान कर्म निर्जरा की प्राप्ति होती है। चौबीस तीर्थंकर वीतराग पुरुष होते हैं। वे बाहर से ज्ञान प्राप्त नहीं करते, बल्कि अपनी गहन आध्यात्मिक साधना के माध्यम से आत्म-ज्ञान (केवलज्ञान) प्राप्त करते हैं। उनकी स्तुति आत्म-शुद्धि के लिए एक सुंदर माध्यम बन सकती हैं। तीर्थंकरों की तन्मयता पूर्वक की गई स्तुति और स्तवना से पूर्व संचित पाप नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य संसार सागर को पार कर मोक्ष प्राप्त कर सकता है। सहवर्ती साध्वी श्री ने भी प्रेरक उद्बोधन दिया।